मंदी से देश को बाहर निकालने की कोशिश कर रही मोदी सरकार को रूस और सऊदी अरब के हालिया फैसले से बड़ा झटका लगा है। हालांकि यह झटका केवल भारत के लिए नहीं बल्कि आधी दुनिया के लिए है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत पर पड़ेगा। दरअसल सऊदी अरब की अगुवाई में पेट्रोलियम उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने प्रतिदिन 1.5 अरब बैरल तक कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने का फैसला लिया है।अगर रूस अपनी मंजूरी दे देता है तो 2008 की मंदी के बाद ओपेक देशों द्वारा यह तेल उत्पादन में सबसे बड़ी कटौती होगी। हालांकि अपने फैसले को लागू करने से पहले पेट्रोलियम उत्पादक देशों का समूह रूस की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। अगर रूस भी इसे मंजूरी दे देता है तो एक ही झटके में वैश्विक बाजारों में तेलों के दाम आसमान छू सकते हैं।
जिसका सीधा असर भारत पर भी पड़ेगा। जहां भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी से जूझ रही है और सरकार को राजकोषीय घाटा भी कम करने की चुनौती है, ऐसे में यह फैसला भारत की परेशानी बढ़ाने वाला है। पिछले 2 सालों में रूस और सऊदी अरब एक दूसरे के करीब आए हैं, जिसके बाद ओपेक और गैर ओपेक देश, जिन्हें ओपेक+2 के नाम से भी जाना जाता है, सभी मिलकर कोशिश कर रहे हैं कि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के दामों में वृद्धि की जा सके। अभी तक अमेरिका और सऊदी अरब के इशारे पर ओपेक देशों के सदस्य कच्चे तेल के दामों में उतार-चढ़ाव करते आए हैं लेकिन इस बार अमेरिका भी चुप है।