सिरसा।‘‘किसान कोरोना वायरस से तो मरे ना मरे मगर पकी-पकाई फसल तबाह हो गई तो कर्ज तले दबकर अवश्य मरने को मजबूर हो जाएगा।‘‘ यह कहना था सिरसा जिले के गांव दड़बी के किसान छोटू कंबोज, नाथूसरी के राममूर्ति आर्य का। उन्होंने कहा कि उनके जैसे किसानों को डर सता रहा है कि कहीं उनकी छह माह की गई मेहनत यूं ही बर्बाद ना हो जाए। किसानों से बात की जिन्होंने बताया कि फसल की कटाई व कढ़ाई के लिए ट्रैक्टर व अन्य उपकरण ठीक करने की भी जरूरत है, मगर ना मिस्त्री मिल रहे और ना ही यंत्र।
उन्होंने बताया कि गेहूं की कटाई के लिए पड़ोसी प्रांत पंजाब से कंबाइन आती है अबकी बार उनके आने पर भी सवालिया निशान लग गया है। जब इस संदर्भ में सिरसा के कृषि उप निदेशक बाबूलाल वर्मा से पूछा गया तो उन्होंने बताया की किसान की फसल पक कर तैयार है इसमें कोई दो राय नहीं है, सरसों की काफी फसल कटी हुई है,मगर गेहूं की फसल को काटने की अनुमति देना नागरिक प्रशासन का काम है जिस पर मशविरा चल रहा है।
उन्होंने कहा कि कृषि उपकरणों को ठीक करने के लिए कुछ दुकानों को खोला जाएगा। उत्तरी भारत के हरियाणा, पंजाब व राजस्थान राज्य में सरसों की फसल जहां बिल्कुल पक कर तैयार है वहीं गेहूं की फसल पकाव के अंतिम पड़ाव पर है। लॉक डाउन के कारण किसान खेतों में जा नहींं पा रहे जिससे सरसों की फसल खराब हो रही है। इसके अलावा प्रवासी मजदूरों के पलायन व सीजन में दूसरे प्रदेशों से आने वाले मजदूरों के इस बार आने की भी उम्मीद नहीं है।
हरियाणा के सिरसा फतेहाबाद, भिवानी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी पंजाब के मानसा फाजिल्का, राजस्थान के हनुमानगढ़ श्रीगंगानगर बीकानेर चूरू जैसे जिलों में सरसों का उत्पादन खूब होता है। कमोबेश इन्हीं जिलों में गेहूं का भी उत्पादन है। सिरसा, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर व मानसा का क्षेत्र उत्तरी भारत में सर्वाधिक गेहूं का उत्पादन करता है। इसलिए इस क्षेत्र को धान का कटोरा भी कहा जाता है। गांव से किसान पक्की सरसों की कटाई के लिए खेतों में जाने के लिए प्रशासन से अनुमति मांग रहा है मगर कोई अनुमति देने को तैयार नहीं है।