मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार का गिरना और राहुल गांधी के दाहिने हाथ सिंधिया का भगवाई होना इसी कहावत को साबित कर रहा है। मध्यप्रदेश में राजनीति के अभी कई खेल बाकी हैं। भाजपा के लिए पहली दुविधा अपना मुख्यमंत्री का चेहरा और मंत्रिमंडल का बंटवारा करने की है। दूसरी बड़ी दुविधा राज्य में होने वाले उपचुनाव में कम से कम 10-12 सीटें जीतने की भी हैं। माना जा रहा है कि उपचुनाव के बाद कांग्रेस की स्थिति सुधरने पर एक बार फिर सत्ता पाने, बचाने की होड़ लग सकती है।
कमलनाथ के फिल मुख्यमंत्री के तौर पर मध्यप्रदेश तिरंगा फहराने की स्थिति आ सकती है। हाल ही में शिवराज ने अपने विरोधी और निवर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ के घर जाकर उनसे मुलाकात की। यह है कि शिवराज के नेतृत्व में ही बीजेपी ने न केवल प्रदेश कांग्रेस पार्टी में बड़ा सेंध लगाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को तोड़ लिया, बल्कि कमलनाथ की सरकार भी गिरा दी।
मालूम हो कि ज्योतिरादित्या सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के 11 मार्च को विधायक के पद से अपना त्यागपत्र देने से सियासी संकट पैदा हुआ। इनमें से छह के इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष ने तुरंत कर लिये थे, जबकि 16 बागी विधायकों के इस्तीफे कल देर रात को मंजूर हुए थे। इससे कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई थी। ये सभी विधायक वर्तमान में बेंगलुरु में ठहरे हुए हैं।