नई दिल्ली। कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया परेशान है। कोरोना वायरस संकट की दूसरी लहर के कहर के बीच राहत भरी खबर आई है। ऐसे में अगर कोई राहत वाली खबर मिलती है तो अच्छा लगता है साथ ही सुरक्षित भी महसूस होता है। यहां के शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों का शरीर हमेशा कोरोना से लड़ता रह सकता है। यानी आपके शरीर में कोरोना के खिलाफ प्रतिरक्षण प्रणाली यानी एंटीबॉडी हमेशा बनती रहेंगी। अमेरिका स्थित वॉशिगंटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों का शरीर हमेशा कोरोना वायरस से सुरक्षित रहते हुए इस महामारी का मुकाबला कर सकता है। साथ ही कोरोना वायरस से संघर्ष करती रहेंगी। सबसे बड़ी खबर ये है कि कोरोना संक्रमण के पहले लक्षण के 11 महीने बाद फिर से एंटीबॉडी विकसित हो रही हैं।
पहली खुशखबरी ये कि आपके शरीर को कोरोना से बचाने वाला रक्षा कवच यानी एंटीबॉडी हमेशा आपका साथ निभाती रहेंगी। दूसरी राहत ये कि कोरोना संक्रमण का पहला लक्षण दिखने के 11 महीने बाद लोगों में फिर से एंटीबॉडी विकसित हो रही हैं। शोधकर्ताओं का अध्ययन साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ। जिसके मुताबिक संक्रमण मुक्त होने के महीनों बाद तक शरीर में Covid-19 वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडी सेल्स काम करती रहती हैं। इनकी क्षमता लगातार बढ़ती रहती है। हैरानी इस दावे पर कि ये एंटीबॉडी जीवन भर मानव शरीर में रह सकती हैं। यानी आप थोड़ी सी सावधानी बरतते हुए अपनी पूरी जिंदगी कोरोना से बिना डरे बिता सकते हैं।
स्टडी के लेखक ने कहा कि कोरोना की पहली लहर के दौरान कहा जा रहा था कि संक्रमण के बाद एंटीबॉडी ज्यादा दिनों तक के लिए शरीर में नहीं रहती। लेकिन ये सच नहीं है। संक्रमण के बाद एंटीबॉडी कम होते हैं। इम्यूनिटी भी कमजोर होती है लेकिन ये जल्द रिकवर हो जाती हैं। वॉशिगंटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर और इस स्टडी के लेखक अली एलबेडी ने कहा कि कोरोना वायरस की पहली लहर यानी पिछले साल गर्मियों के दौरान ऐसी खबरें आई थीं कि संक्रमण के बाद एंटीबॉडी ज्यादा दिनों तक के लिए शरीर में नहीं रहती। लेकिन ये सच नहीं है। संक्रमण के बाद एंटीबॉडी कम होते हैं। इम्यूनिटी भी कमजोर होती है लेकिन वापस ये रिकवर कर लेते हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक जो एंटीबॉडी बनती हैं वो इम्यून सेल्स को बांटती हैं। उसके बाद ये शरीर के टिस्यू और ब्लड में पहुंच जाती हैं। इससे एंटीबॉडी का स्तर तेजी से बढ़ता है। ये एंटीबॉडी जिन कोशिकाओं से बनती हैं उन्हें प्लाज्मा सेल्स कहते हैं। प्लाज्मा सेल्स शरीर के बोन मैरो यानी अस्थि मज्जा में रुकती हैं। इसके बाद जैसे ही शरीर में वायरस का हमला होता है। ये एंटीबॉडी अचानक सक्रिय हो कर बेहद तेजी से अपनी संख्या बढ़ाकर वायरस का मुकाबला करती हैं। यही एंटीबॉडी हमारे और आपके शरीर को कोरोना वायरस के खतरे से बचाती है।