नई दिल्ली। देश में महज छह साल में ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले परिवारों के ऋण में 84 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। स्टेट बैंक (एसबीआई) के आर्थिक शोध विभाग की बुधवार को जारी ऋण एवं निवेश सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2012 से 2018 तक छह वर्ष में ग्रामीण परिवारों के औसत ऋण में 84 प्रतिशत और शहरी परिवारों के ऋण में 42 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस अवधि में 18 राज्यों में ग्रामीण परिवारों का औसत ऋण दोगुना से अधिक हो गया जबकि महाराष्ट्र, राजस्थान और असम सहित पांच राज्यों में शहरी और ग्रामीण दोनों घरों में औसत ऋण में दोगुना वृद्धि हुई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी के कारण परिवारों के ऋण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत की दर में वृद्धि हुई है। यह वित्त वर्ष 2020-21 में तेजी से बढ़कर 37.3 प्रतिशत हो गयी जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में 32.5 प्रतिशत थी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में परिवारों के ऋण में 34 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि यह पूर्ण रूप से बढ़ गया है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में परिवारों के कर्ज के वर्ष 2021 में वर्ष 2018 के स्तर से दोगुना होने का अनुमान है।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2012 में ऋणग्रस्तता का सूचक ऋण-परिसंपत्ति अनुपात ग्रामीण परिवारों के लिए 3.2 था, जो वर्ष 2018 में बढ़कर 3.8 हो गया। इसी तरह शहरी परिवारों के लिए यह अनुपात 3.7 से बढ़कर 4.4 हो गया है। इस अवधि में केरल, मध्य प्रदेश और पंजाब तीन ऐसे राज्य थे, जहां ऋण-परिसंपत्ति अनुपात में कम से कम 100 आधार अंक की गिरावट देखी गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि में अच्छी बात यह रही कि वर्ष 2018 में ग्रामीण क्षेत्र में, गैर-संस्थागत ऋण एजेंसियों के बकाया कर्ज कम होकर 34 प्रतिशत रह गया जबकि 2012 में यह 44 प्रतिशत रहा था। इस तरह लगभग सभी राज्यों में गैर-संस्थागत ऋण में भारी गिरावट दर्ज की गई है। बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में गैर-संस्थागत ऋण की हिस्सेदारी में काफी गिरावट आई है। यहां तक कि हरियाणा और राजस्थान में कर्ज माफी की योजना लागू होने से गैर-संस्थागत ऋण की हिस्सेदारी में भी गिरावट आई।
रिपोर्ट के मुताबिक हरियाण और राजस्थान में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के विस्तार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2020 में समाप्त सात साल की अवधि में केसीसी कार्डों की संख्या में पांच गुना की वृद्धि हुई है। हरियाणा और राजस्थान में केसीसी कार्डों की संख्या में नौ प्रतिशत की औसत वृद्धि देखी गई है।