नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) और साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) को रिप्लेस करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार की ओर से लाए गए तीन नए कानूनों की तारीफ की है। उन्होंने विधि एवं न्याय मंत्रालय की तरफ से नए कानूनों को लेकर आयोजित एक कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि तीनों नए कानून समाज के लिए बेहद जरूरी हैं और भारत अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए तैयार है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'नए कानूनों ने आपराधिक न्याय पर भारत के कानूनी ढांचे को एक नए युग में बदल दिया है। नए कानून जरूर सफल होंगे यदि हम नागरिक के रूप में उन्हें अपनाएंगे।' उन्होंने यह भी कहा कि पीड़ितों के हितों की रक्षा करने और अपराधों की जांच और मुकदमों को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए इन तीनों कानूनों में बहुत जरूरी सुधार पेश किए गए हैं। सीजेआई ने कहा, 'संसद से इन कानूनों का पास होना एक स्पष्ट संकेत है कि भारत बदल रहा है और आगे बढ़ रहा है, और मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए नए कानूनी जरूरतों को अपना रहा है।'
कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता भी मौजूद थे। तीनों नए कानून- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई, 2024 से लागू होंगे। इनके लागू होने के साथ ही देश की आपराधिक न्याय प्रणाली पूरी तरह से बदल जाएगी। हालांकि, हिट-एंड-रन के मामलों से संबंधित प्रावधान तुरंत लागू नहीं किया जाएगा। तीनों कानूनों पिछले साल 21 दिसंबर को संसद से पास हुए थे और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को इन्हें अपनी मंजूरी दी थी।
सीजेआई ने कहा, 'पुराने कानूनों (IPC, CRPC, Evidence Act) की सबसे बड़ी खामी उनका बहुत पुराना होना था। ये कानून क्रमश: 1860, 1873 से चले आ रहे थे। नए कानून संसद से पारित होना इस बात का साफ संदेश है कि भारत बदल रहा है और हमें मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए नए तरीके चाहिए, जो नए कानूनों से हमें मिलने जा रहे हैं।' उन्होंने कहा कि नए कानूनों के अनुसार छापेमारी के दौरान साक्ष्यों की ऑडियो विजुअल रिकॉर्डिंग होगी, जो अभियोजन पक्ष के साथ-साथ नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में ट्रायल और फैसले के लिए टाइमलाइन तय होना एक सुखद बदलाव है। उन्होंने कहा, 'लेकिन न्यायालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर भी होना चाहिए वरना नए कानूनों के तहत जो लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं उन्हें हासिल करना मुश्किल हो जाएगा। हाल ही में मैंने देश के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को चिट्ठी लिखकर जजों, पुलिस, वकीलों समेत सभी स्टेक होल्डर्स को नए कानूनों के लिए ट्रेनिंग दी जाए। हमारे पुराने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की खामी यह रही है कि गंभीर और छोटे-मोटे अपराधों को एक ही नजरिए से देखा जाता है। नए कानूनों में इसमें बदलाव किया गया है।'
सीजेआई ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में कहा गया है कि ट्रायल 3 साल में पूरा होना चाहिए और फैसला सुरक्षित रखे जाने के 45 दिनों के भीतर सुनाया जाना चाहिए। लंबित मामलों को सुलझाने के लिए यह एक अच्छी पहल है। नए कानून के मुताबिक पीड़ितों को एफआईआर की प्रतियां उपलब्ध करानी होगी तथा उन्हें डिजिटल माध्यम से जांच की प्रगति के बारे में सूचित करना होगा। अपराध की बदलती प्रकृति और नए डिजिटल क्राइम को ध्यान में रखते हुए, हमारे पुलिस बलों के बुनियादी ढांचे और क्षमता को बढ़ावा देना अनिवार्य है। नए कानूनों को मौजूदा लोग ही लागू करेंगे। अब यह हम सभी के लिए एक चुनौती होगी, क्योंकि इन कानूनों के लिए व्यवहार में बदलाव, मानसिकता में बदलाव, और नई संस्थागत व्यवस्था की जरूरत होगी।