तेहरान। ईरान ने कहा है कि वह इस बात पर चर्चा के लिए तैयार है कि अमेरिका परमाणु समझौते पर कैसे लौट सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प परमाणु करार को देश के लिए हानिकारक करार देते हुए मई 2018 में इससे अलग हो गये थे। जुलाई 2015 में ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों एवं जर्मनी तथा यूरोपीय संघ के बीच वियना में ईरान परमाणु समझौता हुआ था।
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ ने दैनिक ‘ईरान समाचार पत्र’ से कहा,‘तेहरान इस बात के लिए तैयार है कि वाशिंगटन परमाणु कार्यक्रम पर कैसे लौट सकता है। ईरान ने बार-बार कहा है कि वह केवल परमाणु समझौते के ढांचे के भीतर और अन्य देशों की भागीदारी के साथ ही समझौते पर लौटने, प्रतिबंधों को उठाने, क्षति के मुआवजे और अन्य मुद्दों पर अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैयार है। ईरान यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि इस बार अमेरिका समझौते से पीछे नहीं हटे।
जरीफ ने कहा,‘‘अगर अमेरिका संयुक्त व्यापक कार्य योजना का भागीदार बनना चाहता है, जिसकी सदस्यता राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अस्वीकार कर दी गई थी, तो हम चर्चा करने के लिए तैयार हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका जेसीपीओए में कैसे शामिल हो सकता है।’’ उल्लेखनीय है कि बराक ओबामा के समय के इस समझौते की ट्रम्प पहले ही कई बार आलोचना कर चुके हैं।
उन्होंने कहा था, "मेरे लिए यह स्पष्ट है कि हम ईरान के परमाणु बम को नहीं रोक सकते। ईरान समझौता मूल रूप से दोषपूर्ण है। इसलिए, मैं ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने की घोषणा कर रहा हूं। इसके कुछ क्षण बाद उन्होंने ईरान के खिलाफ ताजा प्रतिबंधों वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किये। चुनाव प्रचार के समय से ही उन्होंने परमाणु समझौते की कई बार आलोचना की थी और इसे खराब बताया था। इस समझौते के वार्ताकार तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी थे।
ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने के 15 महीनों अंदर देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर यह फैसला काफी महत्वपूर्ण माना गया था। फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ट्रंप के इस निर्णय की निंदा की थी। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल और ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने अमेरिकी राष्ट्रपति से इस समझौते से नहीं निकलने की अपील की थी।