वाशिंगटन। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि नागोरनो-काराबख क्षेत्र में अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच मौजूदा तनाव को कम करने के लिए अमेरिका की ओर से हर संभव प्रयास किए जायेंगे और इस पर विचार किया जा रहा है।
ट्रम्प ने रविवार को व्हाइट हाउस में पत्रकारों से कहा, ‘‘हम इस विवाद पर नजर बनाए हुए हैं। उस क्षेत्र में हमारे कई देशों के साथ अच्छे संबंध हैं। हम विचार करेंगे कि इस हिंसा को रोकने के लिए हम क्या कर सकते हैं।’’ अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक वक्तव्य जारी कर अर्मेनिया और अजरबैजान से नागोरनो-काराबख क्षेत्र में तत्काल प्रभाव से युद्ध विराम लागू करने की अपील की है और साथ ही कहा है कि इस विवाद में किसी तीसरे पक्ष के शामिल होने से कोई लाभ नहीं होगा तथा हालात और अधिक खराब हो सकते हैं। तुर्की ने अजरबैजान को समर्थन देने की घोषणा की है।
अमेरिका ने दोनों पक्षों से ओएससीई मिंस्क समूह के साथ सहयोग करने और जल्द से जल्द बातचीत शुरू करने का आग्रह किया है। संयुक्त राष्ट्र समेत कई अन्य संगठनों ने भी दोनों देशों से तत्काल प्रभाव से युद्ध विराम लागू करने की अपील की है। इससे पहले अर्मेनिया और अजरबैजान की सेना के बीच रविवार को नागोरनो-काराबख क्षेत्र में एक इलाके पर कब्जे को लेकर हिंसक संघर्ष शुरू हो गया। अर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि नागोरनो-काराबख क्षेत्र में अजरबैजान की सेना के साथ हुए संघर्ष में उसके 16 सैनिक मारे गए हैं जबकि 100 से अधिक घायल हुए हैं।
अर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशनयिन ने ट्वीट कर जानकारी दी कि अजरबैजान ने अर्तसख पर मिसाइल से हमला किया है जिससे रिहायशी इलाकों को नुकसान पहुंचा है। पशनयिन के मुताबिक अर्मेनिया ने जवाबी कारवाई करते हुए अजरबैजान के दो हेलीकॉप्टर, तीन यूएवी और दो टैंकों को मार गिराया है। इसके बाद अर्मेनियाई प्रधानमंत्री ने देश में मार्शल-लॉ लागू कर दिया है। अर्मेनिया और अजरबैजान दोनों ही देश पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा थे। लेकिन सोवियत संघ के टूटने के बाद दोनों देश स्वतंत्र हो गए। अलग होने के बाद दोनों देशों के बीच नागोरनो-काराबख इलाके को लेकर विवाद हो गया।
दोनों देश इस पर अपना अधिकार जताते हैं। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत इस 4400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अजरबैजान का घोषित किया जा चुका है, लेकिन यहां अर्मेनियाई मूल के लोगों की जनसंख्या अधिक है। इसके कारण दोनों देशों के बीच 1991 से ही संघर्ष चल रहा है। वर्ष 1994 में रूस की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच संघर्ष-विराम हो चुका था, लेकिन तभी से दोनों देशों के बीच छिटपुट लड़ाई चलती आ रही है। दोनों देशों के बीच तभी से ‘लाइन ऑफ कंटेक्ट’ है। लेकिन इस वर्ष जुलाई के महीने से हालात खराब हो गए हैं। इस इलाके को अर्तसख के नाम से भी जाना जाता है।