जैसलमेर। देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जहां ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा हैं वहीं राजस्थान में जैसलमेर जिले में ऑक्सीजन देने वाले वर्षों पुराने लुप्त होते दुर्लभ प्रकृति के पेड़ों को धड़ल्ले से काटा जा रहा है। ग्रीन एनर्जी के नाम पर मरूस्थलीय प्रजातियों के पेड़ों के काटने से न केवल ग्रामीणों में रोष व्याप्त हो गया हैं वरन इन पेड़ों के आसपास पनपने वाली कई मरूस्थलीय प्रजातियों पर संकट उत्पन्न हो गया है। ऐसा ही गंभीर मामला जैसलमेर के फतेहगढ़ उपखण्ड में दवाड़ा गांव में सामने आया हैं जहां एक निजी रिनेवबेल कंपनी द्वारा लगाए जा रहे सौर ऊर्जा संयंत्र के लिये रातों रात जे.सी.बी लगाकर 111 दुर्लभ मरूस्थलीय प्राचीन पेड़ों को काट दिया गया और 51 पेड़ों को मौके पर ही जला दिया गया।
सूत्रों ने आज बताया कि इस संबंध में जिला कलेक्टर द्वारा उपखण्ड अधिकारी से रिपोर्ट मांगी जा रही है स्थानीय पटवारी ने भी पेड़ों को काटने की पुष्टि की हैं और अपनी रिपोर्ट उच्चधिकारियों को प्रस्तुत की है। मिली जानकारी के अनुसार जैसलमेर जिले के उपखण्ड फतेहगढ़ क्षेत्र में एक रिनवेबल एनर्जी कंपनी द्वारा सौर उर्जा के प्रोजेक्ट लगाने के लिये भूमि ले रखी है। आवंटित खसरों पर कंपनी के प्रतिनिधियों द्वारा गत रात्रि दवाड़ा सरहद पर कार्य के दौरान जे.सी.बी से वर्षों पुराने पेड़ों का काटने का कार्य किया गया। ग्रामीणों द्वारा विरोध किया गया और साथ ही कंपनी प्रतिनिधियों को पेड़ों को काटने एवं जलाने के लिये मना किया गया, लेकिन उसके बावजूद कंपनी के प्रतिनिधियों ने वर्षों पुराने पेड़ों पर जे.सी.बी चला दी।
सूत्रों ने बताया कि इसके बाद दवाड़ा के ग्रामीणों ने इसकी शिकायत की। इस पर मूलाना पटवारी मौके पर पहुंचे और निरीक्षण करके रिपोर्ट तैयार की। पटवारी की रिपोर्ट के अनुसार कंपनी के प्रतिनिधियों द्वारा रात्रि के 51 पेड़ काट दिए गए और 51 पेड़ों को जला दिया गया। जिसमें कुमट के 60 पेड़, राज्य वृक्ष खेजड़ी के 10, रोहिड़ा के तीन, कैर के 25, जाल के 10 व बोरड़ी के 03 पेड़ एक साथ काट दिए गए। वहीं कुमट के सात कैर के 41 और बोरड़ी के तीन पेड़ जला दिए गए। इस संबंध में उस क्षेत्र में देगराय ओरण के प्रतिनिधि व पर्यावरण प्रेमी सुमेरसिंह भाटी ने बताया कि जिले में कई कंपनियों द्वारा बिजली उत्पादन का कार्य किया जा रहा है।
वहीं सौर उर्जा के प्रोजेक्ट लगाने के कई कंपनियां जैसलमेर जिले में काम कर रही हैं। इन कंपनियों द्वारा ओरण क्षेत्र में एवं ओरण के आसपास के क्षेत्रों में बिना किसी डर के वर्षा पुराने पेड़ों को काटने का काम किया जा रहा है। कंपनी द्वारा नियमों एवं कानून को ताक पर रखकर राज्य वृक्ष खेजड़ी सहित अन्य कई पेड़ों को काटने का काम धड़ल्ले से किया जा रहा है, लेकिन वनविभाग एवं जिम्मेदारों द्वारा इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। इसको लेकर ग्रामीणों में नाराजगी व्याप्त है। वह बताते हैं कि जिस दवाड़ा क्षेत्र में जिस स्थान पर दर्जनों पेड़ काटे गए हैं वहां कई मरूस्थलीय वन्य जीव प्राणी संकट में आ गए हैं।
खासकर पेड़ों के जड़ों में निवास करने वाली कई सांपों की प्रजातियां डेजर्ट स्पाईन, लिजार्ड एवं अन्य कई प्रजातियों की छिपकलियां, गोडावण एवं पेड़ों पर विचरण करने वाले कई दुर्लभ पक्षी आदि पर संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने बताया कि ओरण व उसके आसपास के क्षेत्रों में विभिन्न प्रजातियों के पुराने वृक्षो जैसे रोहिणा, बोरड़ी, आक, खीप, सणिया, बूर, नागफनी आदि होते हैं एवं घास में सेवण घास व धामन घास व अन्य कई प्रजातियों की घास यहां पर होती हैं। यह ओरण राज्य पक्षी गोडावण, तीतर, हिरण सियार जैसे कई पशु पक्षियों के रहने का ठिकाना हैं। अगर ओरण नहीं रहेंगे तो पशु, पक्षी कहां जायेंगे।
उधर पर्यावरण विशेषज्ञ व गुरू गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सुमित डूकिया ने बताया ओरण में किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए न ही किसी प्रकार की ग्रीन एनर्जी के विकास के नाम पर ओरण के साथ कोई समझौता किया जाना चाहिए। पर्यावरण को बचाने और संतुलन बनाए रखने के लिए ओरण हर तरह से मददगार सिद्ध हो रहे हैं, ओरण की सुंदरता यह है कि यहां पर बड़ी संख्या में गोडावण तिलोर और चिंकारा आदि कई प्रजातियां स्वच्छंद विचरण करती है। जिला कलेक्टर आशीष मोदी ने बताया कि उन्हें इस संबंध में जानकारी मिली हैं तथा इस संबंध में उपखण्ड अधिकारी फतेहगढ़ से रिपोर्ट मांगी गई है।