महाभारत की कथा के पांडवों और कौरवों के कई ऐसे राज हैं जिनके बारे में हम नहीं जानते होंगे। पांडव कुंती और माद्री के पुत्र थे परन्तु उनके पिता महाराज पांडू नहीं थे। आज हम आपको इस बारे में बताने जा रहे हैं कि पांडवों का जन्म कैसे हुआ था। इस से पहले ये जानना जरूरी है कि आखिर महाराज पांडू पिता क्यों नहीं बन सकते थे। वे एक बार वन में शिकार करने गए थे तो उन्होंने एक मृग जोड़े का पीछा करते हुए उनका शिकार कर लिया। लेकिन वो मर्ग के रूप में ऋषि किंडम और उनकी पत्नी थे। तीर लगने पर वे अपने असली रूप में आ गये और पांडु को श्राप दिया कि जैसे तुमने हमें काम क्रीडा करते वक़्त मारा है वैसे अगर तुम भी किसी के साथ संबंध बनाओगे तो तुम्हारी भी मृत्यु हो जाएगी।
इस श्राप से पांडू बेहद परेशान हुए और सारा राजकाज विदुर और पितामह भीष्म को सौंप कर वन में जाकर रहने का फैसला किया। उनके साथ देवी कुंती और देवी माद्री भी चल पड़ी। एक दिन जब पांडु काफी उदास थे तो कुंती ने उनकी उदासी का कारण पूछा तब उन्होंने सारी बात कुंती को बता दी। फिर कुंती ने उन्हें अपने वरदान के बारे में बताया कि वे किसी भी देवता की आराधना कर के उनसे पुत्र प्राप्ति कर सकती है। उसे ये वरदान है। तब पांडु ने उन्हें धर्मराज का आवाहन करने को कहा। इस तरह युधिष्ठिर का जन्म हुआ। उसके बाद पवनदेव के आशीर्वाद से भीम और देवराज इंद्र के आशीर्वाद से अर्जुन का जन्म हुआ। देवी माद्री भी अब पुत्र प्राप्त करना चाहती थी इसलिए कुंती से एक बार उस दिव्य मंत्र के बारे में बताने को कहा। तब माद्री ने वैद्य अश्विनी कुमारों का आवाहन किया जिस से उनके पुत्र नकुल और सहदेव हुए।
इस तरह हुई पांडु की मृत्यु- एक बार पांडू देमाद्री की सुन्दरता देख कर आतुर हो उठे और और माद्री के मना करने पर भी वे नाह माने इसलिए संबंध बनाने के बाद तुरंत उनकी मृत्यु हो गयी। देवी माद्री भी अपने पति के साथ सति हो गई और उन्होंने अपने दोनों पुत्रों की जिम्मेदारी कुंती को सौंप दी।