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जब तक महिलायें घर में रहेंगी, कामयाबी हासिल नहीं कर सकतीं - उषा चोमर

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 7 2021 11:29AM | Updated Date: Mar 7 2021 11:29AM
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अलवर। पद्म श्री से सम्मानित राजस्थान के अलवर की निवासी उषा चोमर ने कहा है कि जब तक महिलाएं घर में रहेंगी तब तक वह किसी  भी काम में कामयाबी हासिल नहीं कर सकतीं। चोमर ने आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आज यहां कहा कि अगर कामयाब बनना है तो घर की  दहलीज लांघनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई काम नहीं है जिसे महिलाएं  नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि वह जिस मुकाम पर पहुंची हैं उसके पीछे कई लोगों के हाथ  हैं, लेकिन जब मन में ठानी तो कामयाबी हासिल होती चली गई और केंद्र सरकार  द्वारा भी उन्हें पदम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया।
 
चोमर ने बताया कि  जब वह 10 साल की थी तो उनकी शादी कर दी गई और चार साल बाद 14 साल की उम्र  में गौना कर दिया गया था । बचपन से ही उन्हें मेला ढोने का काम सिखाया  जाता था। शादी से पहले वो अपनी माँ के साथ मेला ढोने जाती थी। शादी के बाद  अपनी सास के साथ जाने लगी। जब मैं पीहर से अपने ससुराल आई तो सोचा कि शायद  यहाँ पर मैला ढोने का काम नहीं होगा लेकिन यहां भी मैला ढोने की प्रथा  दिखाई दी। हालात यह थे कि लोग सुबह नहा धोकर जिस तरह मंदिर में जाया करते  थे उस तरह हम शौचालय के मंदिर में जाया करते थे क्योंकि हमें  सुबह शौचालय साफ करने पड़ते थे।
 
इस कारण हम कई कई दिन तक नहाते नहीं थे। हालांकि इस काम  से काफी घृणा थी,  लेकिन क्योंकि यह काम छोड़ नही सकते थे। इसलिए हम अपने  नसीब से ज्यादा कुछ सोच नहीं सकते और न ही कर पाते थे। उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले जब वह  मेला ढोने का काम कर रही थी उसी दौरान अलवर शहर के जगन्नाथ मंदिर के समीप  सुलभ इंटरनेशनल संस्था चलाने वाले डॉ बिंदेश्वर पाठक  मिले और उन्होंने  सबसे पहले यह सवाल किया कि तुम यह मैला ढोने का काम क्यों करती हो। यह सवाल  हमने जिंदगी में पहली बार सुना कि वास्तव में हम यह काम क्यों करते  हैं। क्योकि हमारे यहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी मेला ढोने का काम चला रहा था।
 
उसके बाद  वह हमारे आग्रह पर हमारी बस्ती में गए तो वहां भी उन्होंने यही सवाल किया  इसके बाद उन्होंने दिल्ली सुलभ संस्था में आने का निमंत्रण दिया। पहले तो  घरवाले पर मना करने लगे क्योंकि जिन घरों में हुए मेला ढोने जाते थे वहां  पर दो-तीन दिन की छुट्टी होना भी एक बड़ी बात मानी जाती थी। चोमर ने बताया कि पति के कहने पर वह दिल्ली गई और वहां पर हमारा  बिल्कुल उसी तरह आदर सत्कार किया गया जिस तरह आमजन का किया जाता है। नावहां  जाति का कोई भेद, न धर्म का कोई भेद दिखाई दिया। क्योकि सुलभ संस्था  चलाने वाले खुद एक ब्राह्मण थे। उसके बाद उन्होंने अपने मन में ठानी की  वास्तव में इस संस्था से जुड़कर वह इस मैला ढोने की प्रथा को खत्म करेंगी। उसके बाद वह संस्था से जुड़े और संस्था से जुड़ने के बाद उन्होंने कई देशों में यात्रा भी की।
 
अब सवाल इस चीज का पैदा हुआ कि जब हमने मैला ढोने की  काम को बंद किया तो अब रोजगार का संकट पैदा हो गया सुलभ संस्था के संस्थापक  डॉ बिंदेश्वर पाठक ने बताया कि तुम क्या काम कर सकते हो अचार मंगोड़ी या अन्य सामान जो बना सकते हैं वह बनाओ। बेचने का काम मेरा है। उन्होंने सबसे  पहले यह सवाल किया कि हमारे हाथ का बना कौन खरीदेगा। डॉ बिंदेश्वर पाठक ने  कहा कि आप सामान बनाए सामान बिकवाने का काम मेरा है।
 
उसके बाद वह काम से जुड़ गई और आज अलवर में उनके समाज की सैकड़ों महिलाएं इस काम से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने अलवर शहर की जनता को भी धन्यवाद दिया कि आज उनके हाथों का  बना सामान भी अलवर के घरों में पहुंच रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने  स्वच्छता का संदेश दिया और अपना लक्ष्य निर्धारित किया कि हर घर में शौचालय  हो। अगर हर घर में शौचालय होगा तो निश्चित रूप से पूरे देश से मैला ढोने  की प्रथा खत्म होगी।
 
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