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कृषि कानूनों के खिलाफ सरकार उठायेगी हर संभव कदम : अमरिंदर

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 29 2020 4:43PM | Updated Date: Sep 29 2020 4:43PM
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चंडीगढ़। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने किसान यूनियनों को भरोसा दिया है कि उनकी सरकार काले कृषि कानूनों और इनके खिलाफ डटे किसानों का पूरा समर्थन करेगी तथा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने सहित हर संभव कदम उठायेगी। कैप्टन सिंह आज किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से इस मुद्दे पर उनके विचार जानने के लिये बुलायी बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। 

उन्होंने कहा कि सरकार कानूनी विशेषज्ञों की टीम के साथ इस मुद्दे को गंभीरता से विचारेंगे और आगे उठाए जाने वाले कदमों को अंतिम रूप देंगे, जिनमें इन कृषि कानूनों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देना शामिल होगा। इस मौके पर किसानों के नुमायंदों के अलावा कांग्रेस के महासचिव एवं पंजाब मामलों के प्रभारी हरीश रावत समेत कैबिनेट मंत्री सुखजिन्दर सिंह रंधावा, गुरप्रीत सिंह कांगड़, भारत भूषण आशु , पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान सुनील जाखड़ और एडवोकेट जनरल अतुल नन्दा भी मौजूद थे।

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘हम केंद्र सरकार द्वारा राज्य के संघीय और संवैधानिक अधिकारों पर किए गए हमलों का जवाब देने के लिए हर मुमकिन कदम उठाएंगे और किसानों के हितों के लिए लड़ेंगे।’’ उन्होंने कहा कि यदि कानूनी माहिरों की यह सलाह होती है कि केंद्रीय कानूनों का मुकाबला करने के लिए प्रांतीय कानूनों में संशोधन किया जाए, तो ऐसा करने के लिए तुरंत ही विधान सभा का विशेष सत्र बुलाया जाएगा।

उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मसले पर सरकार को विधानसभा सत्र बुलाने पर कोई ऐतराज नहीं है लेकिन अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल विधानसभा के विशेष सत्र की माँग को हलके स्तर की ड्रामेबाजी करार दे रहे हैं। पहले तो महीनों तक अकालियों ने केंद्रीय कानूनों की खुलकर हिमायत की थी। पिछले सत्र के दौरान अकाली कहाँ थे और क्यों बादल ने सर्वदलीय बैठक में अन्य पक्षों की तरह हिमायत नहीं की।

कैप्टन सिंह ने अकाली दल द्वारा अपने संकुचित राजनैतिक हितों की पूर्ति के लिए राज्य के किसानों के हित बड़े कॉर्पोरेट घरानों के आगे कुर्बान करने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि अकाली विधायकों ने विधानसभा सत्र से दूरी बनाए रखने का फैसला किया था, जिसके दौरान कृषि बिलों के ख़िलाफ प्रस्ताव पास हुआ था। उन्होंने कहा कि यह साफ हो चुका है कि अकालियों ने हमेशा से ही कृषि अध्यादेशों की हिमायत की है। जब पंजाब में किसानों के भारी विरोध को देखते हुए अकाली बुरी तरह से फंस गए तो केन्द्र से अपने संबंध तोड़ने का नाटक रख। उन्होंने सवाल किया कि यदि अकालियों को किसानों के हितों की इतनी ही चिंता थी तो हरसिमरत बादल ने उस समय केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा क्यों नहीं दिया जिस समय केंद्र सरकार ने कृषि अध्यादेश लाए गए थे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कानून बनाना संविधान का उल्लंघन और संघीय ढांचे पर हमला है। उनकी सरकार किसानों की चिंताओं को बखूबी समझती है और किसानी को तबाह करने के राह डालने वाले इन काले कानूनों को रद्द करने के लिए हर संभव कदम उठायेगी।

मुख्यमंत्री ने और जानकारी दी कि यह लड़ाई कई मोर्चों पर लड़ी जाएगी और बीते दिनों कुल हिंद कांग्रेस के सचिव हरीश रावत द्वारा किए गए एलान के मुताबिक हस्ताक्षर मुहिम के अलावा राज्य की सभी पंचायतों को विनती की जाएगी कि कृषि कानूनों के ख़िलाफ प्रस्ताव पास किए जाएँ, जिनको केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। यह नए कानून लागू हो गए तो इसके साथ ही कृषि तबाह हो जाएगी। आने वाले समय में इन काले कानूनों के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य और एफ.सी.आई. का ख़ात्मा किया जाएगा, जिससे पिछले काफी समय से चली आ रही और लाभप्रद साबित हुई खरीद और मंडीकरण प्रणाली का अंत हो जाएगा। 

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