नई दिल्ली। मजबूत आर्थिक परिदृश्य का हवाला देते हुये आर्थिक समीक्षा 2019-20 में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर पाँच प्रतिशत रहेगी, लेकिन अगले वित्त वर्ष में इसके बढ़कर छह से 6.5 प्रतिशत के बीच पहुँचने की उम्मीद है। इसमें कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में गति लाने के लिए सरकारी व्यय में बढ़ोतरी होने से वित्तीय घाटा लक्ष्य को हासिल कर पाना मुश्किल होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतामरण ने शुक्रवार को संसद में इसे पेश किया।
मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम् द्वारा तैयार इस समीक्षा में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी और पूरे वित्त वर्ष के दौरान विकास दर पाँच प्रतिशत रहेगी जबकि अगले वित्त वर्ष में इसके बढ़कर छह से साढ़े छह प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है। इसमें कहा गया है कि दूसरी तिमाही में 10 सकारात्मक कारकों की वजह से अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी। इसमें शेयर बाजार की मजबूत निवेशधारणा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि, माँग बढ़ना, ग्रामीण उपभोग का सकारात्मक परिदृश्य, औद्योगिक गतिविधियों में तेजी लौटना, विनिर्माण में सतत सुधार, वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि, विदेशी मुद्रा भंडार का रिकॉर्ड स्तर और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में सकारात्मक वृद्धि शामिल है।
इन सभी कारकों की वजह से चालू वित्त वर्ष में जीडीपी विकास दर पाँच प्रतिशत पर रहने का अनुमान जताया गया है। साथ ही अगले वित्त वर्ष में विकास दर बढ़कर छह से साढ़े छह फीसदी के बीच रहने का अनुमान है। सरकार बजट से पहले हर साल संसद में आर्थिक समीक्षा पेश करती है जो समाप्त हो रहे वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर माना जाता है। इसके आधार पर ही अगले वित्त वर्ष के लिए बजट में घोषणायें की जाती हैं। इसमें एक बार फिर विश्वास व्यक्त किया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2024-25 तक 50 खरब डॉलर पर पहुँचने की ओर बढ़ रही है। इसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2019 आर्थिक चुनौतियों भरा रहा।
विकास दर घटकर 2009 के आर्थिक संकट के बाद के निचले स्तर 2.9 प्रतिशत पर आ गयी। अनिश्चितता में हालांकि कुछ कमी आयी है, लेकिन अमेरिका और चीन की संरक्षणवादी नीतियों तथा अमेरिका और ईरान के बीच भू-राजनैतिक तनाव के कारण यह अब भी बनी हुई है। इसके कारण चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में विकास दर 4.8 प्रतिशत रह गयी। पहली बार ‘थालीनॉमिक्स’ की अवधारणा पेश करते हुये आमजनों के खर्च को भोजन की थाली से जोड़ने का प्रयास किया गया है। समीक्षा में कहा गया है कि आम लोगों की थाली 2006-07 की तुलना में 2019-20 में सस्ती हुई। हालाँकि यह भी स्वीकार किया गया है कि एक साल पहले की तुलना में सब्जियों और दालों की ऊँची कीमतों के कारण आम आदमी की थाली 2017-18 के मुकाबले महँगी हुई है।