नई दिल्ली। नई दिल्लीऔर वाशिंगटन के बीच रिश्ते काफी गहरे और मजबूत हैं लेकिन यह इतने भी मजबूत नहीं है कि इसे हल्के में ले लिया जाए। यह कहना है कि अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी का। गुरुवार को एक कार्यक्रम को संबोधित करते हए उन्होंने कहा कि भारत अपनी रणनीतिक आजादी को बहुत पसंद करता पर युद्ध के दौरान इसका मतलब नहीं होता। दुनिया आपस में जुड़ी हुई है। युद्ध अब दूर नहीं है। हमें सिर्फ शांति के लिए खड़ा नहीं होना होगा। बल्कि अशांति पैदा करने वाले देशों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी होगी। गार्सेटी ने इन टिप्पणियों को पीएम मोदी के रूस दौरे से जोड़ कर देखा जा रहा है।
गार्सेटी आज नई दिल्ली में आयोजित एक डिफेंस कॉन्क्लेव में शामिल हुए थे। कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत दोनों देशों को यह याद रखना होगा कि इस रिश्ते में हम जैसा निवेश करेंगे, हमें ठीक वैसा ही परिणाम मिलेगा। भारत और अमेरिका को एक दूसरे की जरूरतों को समझना होगा। उन्होंने कहा कि मैं इस कार्यक्रम में किसी प्रकार का भाषण देने नहीं आया हूं। मैं यहां सुनने-सीखने और साझा मूल्यों को याद दिलाने आए हैं। भारत-अमेरिका एक दूसरे के साथ अपना भविष्य देखते हैं।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने एक दिन पहले कहा कि भारत के लिए रूस को दीर्घकालिक और विश्वसनीय साझेदार मानना अच्छा नहीं है। जब चीन और भारत को चुनने की बारी आएगी तो रूस नई दिल्ली की बजाए बीजिंग को चुनेगा। अमेरिकी एनएसए ने पीएम मोदी की मॉस्को यात्रा से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की। हमने भारत सहित सभी देशों को यह चीज स्पष्ट कर दी है। सुलिवन ने कहा था कि रूस चीन का करीबी बनता जा रहा है। चीन असल में रूस का जूनियर पार्टनर बन रहा है। रूस कभी भी भारत की बजाए चीन का ले सकता है।
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरीन जीन पियरे ने बुधवार को एक बयान में कहा था कि हमें लगता है कि रूस के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध हैं। भारत के पास वह क्षमता है कि वे रूस को युद्ध रोकने के लिए मना सकते हैं। हालांकि, अंतिम फैसला पुतिन का ही होगा। पुतिन ने युद्ध शुरू किया था और अब वही युद्ध को रोकेंगे।