नई दिल्ली। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के सलाहकार मिखाइलो पोडोल्याक ने बुधवार को एक ऐसा बयान दे दिया जिससे हंगामा खड़ा हो गया है। उन्होंने भारतीयों और चीनियों की बौद्धिक क्षमता पर आपत्तिजनक टिप्पणी की। हालांकि, जब विवाद बढ़ा तो यूक्रेन के विदेशी मंत्रालय ने उनके बयान से खुद को किनारा कर लिया जिसके बाद पोडोल्याक अपने बयान से ही पलट गए। उन्होंने बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाते हुए रूस पर निशाना साधा है। दरअसल, बुधवार को पोडोल्याक ने कहा था कि भारत चंद्रयान लॉन्च कर रहा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो आधुनिक दुनिया को समझता है।
भारत, चीन और तुर्की की नाम लेते हुए पोडोल्याक ने एक इंटरव्यू में कहा, 'भारत, चीन, तुर्की के साथ क्या दिक्कत है? उनके साथ समस्या यह है कि वो इस बात का विश्लेषण नहीं करते कि जो कर रहे हैं, उसका नतीजा क्या होगा। दुर्भाग्य से इन देशों की बौद्धिक क्षमता कमजोर है। हां, वे विज्ञान में निवेश करते हैं, भारत ने चंद्रयान भी लॉन्च किया है और उसका रोवर चंद्रमा की सतह पर ट्रैकिंग कर रहा है लेकिन इससे यह नहीं तय हो जाता कि ये देश पूरी तरह समझ चुके हैं कि आधुनिक दुनिया किसे कहते हैं।'
उनकी इस टिप्पणी पर भारत की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीं, दिल्ली स्थित यूक्रेन के दूतावास ने कहा कि वो पोडोल्याक के विचारों का समर्थन नहीं करते हैं। दिल्ली में यूक्रेन के एक प्रवक्ता ने कहा, 'ये पोडोल्याक के निजी विचार हैं। उन्होंने जो कहा, वो यूक्रेन के विदेश मंत्रालय और यूक्रेन के राष्ट्रपति कार्यालय की आधिकारिक स्थिति नहीं है।' बयान पर यूक्रेन विदेश मंत्रालय के किनारा करने के बाद पोडोल्याक ने अपने एक्स (पहले ट्विटर) हैंडल पर एक ट्वीट कर आरोप लगाया कि रूसी प्रोपैगेंडा के तहत उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है।
उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, 'क्लासिक रूसी प्रोपैगेंडा- संदर्भ से अलग बातें फैलाएं, तोड़-मरोड़ कर बयान को पेश करें और संघर्ष बढ़ाने के मकसद से टार्गेट ऑडिएंस को उकसाएं। तुर्की, भारत, चीन और दूसरी क्षेत्रीय शक्तियां आधुनिक दुनिया में वैश्विक भूमिकाओं का दावा कर रही हैं, जो उचित भी है और ऐतिहासिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक कारण भी हैं। इन देशों की भूमिकाएं रूस की तुलना में कहीं अधिक व्यापक हैं। लेकिन दुनिया क्षेत्रीय और राष्ट्रीय हितों से भी कहीं अधिक व्यापक है।'
उन्होंने अपने लंबे-चौड़े ट्वीट में आगे लिखा, 'रूस अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ा रहा है। ऐसे समय में अपने क्षेत्रीय और आर्थिक हितों के लिए वैश्विक हालात को नजरअंदाज करना कहां की समझदारी है। जितनी जल्दी रूस की हार होगी, दुनिया उतनी जल्दी स्थिरता की तरफ बढ़ेगी। महान शक्तियों का काम इन हालात को जल्द से जल्द बदलना है।'
रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत, चीन और तुर्की का रुख तटस्थ रहा है। तीनों ही देशों ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा नहीं की है। भारत ने युद्ध पर तटस्थ रुख रखते हुए बार-बार कहा है कि हिंसा के जरिए युद्ध का समाधान नहीं हो सकता बल्कि बातचीत और कूटनीति के जरिए युद्ध का शांतिपूर्ण समाधान होना चाहिए। भारत ने युद्ध के बाद रूस से रियायती तेल की खरीद रिकॉर्ड मात्रा में बढ़ा दी है जिसे लेकर यूक्रेन आपत्ति जताता रहा है। इसी संबंध में एक बार यूक्रेन ने कहा था कि रूसी तेल में यूक्रेनियों का खून मिला है।
भारत ने जी20 शिखर सम्मेलन में भी यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को आमंत्रित नहीं किया था। भारत का कहना था कि जी20 संघर्ष समाधान का मंच नहीं बल्कि एक आर्थिक मंच है। भारत ने जी20 घोषणापत्र में भी आक्रमण के लिए रूस की निंदा वाला हिस्सा नहीं रखा जिस पर यूक्रेन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। पिछले साल जी20 के बाली घोषणापत्र में आक्रमण के लिए रूस की निंदा की गई थी और जब इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ तो यूक्रेन ने कहा, 'इसमें गर्व करने लायक कुछ भी नहीं है' यूक्रेनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओलेग निकोलेंको ने एक्स पर लिखा, 'जी20 ने अंतिम घोषणा को अपना लिया है। हम उन साझेदारों के आभारी हैं जिन्होंने घोषणापत्र में कड़े शब्दों को शामिल करने का प्रयास किया। हालांकि, यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता के मामले में जी20 के पास गर्व करने लायक कुछ भी नहीं है।'