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अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद कैसा होगा उसका भविष्य?

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 27 2021 6:56PM | Updated Date: Jul 27 2021 6:57PM
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तालिबान को आमतौर पर दाढ़ी और पगड़ी वाले पुरुषों के एक समूह के रूप में चित्रित किया जाता है, जो इस्लामी कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित है और व्यापक हिंसा के लिए जिम्मेदार है. लेकिन उस समूह को समझने के लिए जो अफगानिस्तान में सत्ता में लौटने के लिए तैयार है, और इसके शासन से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं, हमें और अधिक सूक्ष्म तस्वीर की आवश्यकता है.

सबसे पहले, 1980 के दशक में शीत युद्ध के दौरान तालिबान की उत्पत्ति को समझना महत्वपूर्ण है. अफगान गुरिल्लाओं, जिन्हें मुजाहिदीन कहा जाता था, ने सोवियत कब्जे के खिलाफ लगभग एक दशक तक युद्ध छेड़ा. उन्हें अमेरिका सहित कई बाहरी शक्तियों द्वारा वित्त पोषित और सुसज्जित किया गया था. 1989 में, सोवियत संघ पीछे हट गया और इसने उस अफगान सरकार के पतन की शुरुआत की, जो उन पर बहुत अधिक निर्भर थी. 1992 तक, एक मुजाहिदीन सरकार का गठन किया गया था, जिसे राजधानी में खूनी अंदरूनी कलह का सामना करना पड़ा.

प्रतिकूल जमीनी परिस्थितियों ने तालिबान के गठन के लिए उपजाऊ जमीन तैयार की. माना जाता है कि पश्तून जातीयता के वर्चस्व वाला एक इस्लामी कट्टरपंथी समूह, तालिबान पहली बार 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में सऊदी अरब द्वारा वित्त पोषित कट्टर धार्मिक मदरसों में दिखाई दिया था. उनमें से कुछ सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिदीन के लड़ाके थे. 1994 में, तालिबान ने अफगानिस्तान के दक्षिण से एक सैन्य अभियान शुरू किया. 1996 तक, समूह ने बिना किसी प्रतिरोध के अफगान राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया.

अफगानिस्तान के युद्ध से आहत लोगों के लिए, एक तरफ सुरक्षा और व्यवस्था लाने और दूसरी तरफ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का तालिबान का वादा आकर्षक था. लेकिन इसकी एक बहुत ऊंची और कभी-कभी असहनीय कीमत भी चुकानी पड़ती थी : सार्वजनिक फांसी, लड़कियों के स्कूलों को बंद करने (दस वर्ष और उससे बड़ी उम्र के लिए), टेलीविजन पर प्रतिबंध लगाने और ऐतिहासिक बुद्ध प्रतिमाओं को उड़ाने जैसे कठोर दंड की शुरूआत.

समूह का औचित्य अफगान परंपराओं के साथ इस्लाम की एक कट्टरपंथी सोच के सम्मिश्रण से उपजा है. तालिबान शासन (1999) के चरम के दौरान, एक भी लड़की को माध्यमिक विद्यालय में दाखिल नहीं किया गया था और पात्र (9,000) में से केवल 4% प्राथमिक विद्यालयों में थीं. अब लगभग 35 लाख लड़कियां स्कूलों में हैं.

2001 में 9/11 के आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार लोगों को सौंपने से तालिबान के इनकार के बाद देश पर अमेरिका के नेतृत्व में हमला किया गया, तालिबान के कई वरिष्ठ लोग पकड़े जाने से बचने के लिए भाग गए और कथित तौर पर पाकिस्तान के क्वेटा में शरण ली। बाद में इससे 'क्वेटा शूरा' का गठन हुआ, यह तालिबान की नेतृत्व परिषद है, जो अफगानिस्तान में विद्रोह का मार्गदर्शन करती है.

आक्रमण के बाद का अल्पकालिक उत्साह समाप्त हो गया, जब तालिबान ने 2004 में फिर से संगठित होना शुरू किया और नई अफगान सरकार के खिलाफ एक खूनी विद्रोह शुरू किया, जिसमें कम से कम 170,000 लोगों की जान चली गई, जिसमें अब तक 51,613 नागरिक शामिल थे. 2021 में, विद्रोही समूह के पास लगभग 75,000 लड़ाके हैं और इसकी विद्रोही मशीनरी विदेशी फंडिंग (सरकारों और निजी दाताओं से) के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर कराधान, जबरन वसूली और अवैध दवा अर्थव्यवस्था पर चलती है.

तालिबान के इस तरह फिर से उठ खड़े होने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें हस्तक्षेप के बाद रणनीति की कमी, विदेशी सैन्य अभियान के प्रतिकूल प्रभाव, काबुल में एक भ्रष्ट और अक्षम सरकार, और विदेशी वित्तीय और सैन्य सहायता और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता पर बढ़ती निर्भरता शामिल है. अब अमेरिका ने तालिबान के साथ एक समझौता किया है और देश से पीछे हट रहा है. यह 2001 के बाद की नाजुक राजनीतिक व्यवस्था के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है, जिसे बड़े पैमाने पर विदेशों से धन और संरक्षण मिल रहा है.

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