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तीन तलाक के बाद अब बहुविवाद और निकाह हलाला का आया नंबर, सुप्रीम कोर्ट ने बना दी नई संवैधानिक बेंच

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 20 2023 2:31PM | Updated Date: Jan 20 2023 2:31PM
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (20 जनवरी) को कहा कि मुस्लिमों में बहुविवाह और निकाह हलाला प्रथा को संवैधानिक चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच जजों की बेंच सुनवाई करेगी। इस मामले पर पीआईएल दाखिल करने वालों में से एक वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दाखिल जवाबों पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि इस मामले पर एक नई पांच जजों की बेंच का पुर्नगठन किया जाएगा।  दरअसल, पुरानी संवैधानिक बेंच के दो जज, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस हेमंत गुप्ता रिटायर हो गए हैं। बीते साल अश्विनी उपाध्याय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया था। जिस पर सुनवाई करते हुए सीजेआई ने कहा कि पांच जजों की बेंच के पास और भी कई महत्वपूर्ण मामले लंबित हैं। हम एक और संवैधानिक बेंच का गठन कर रहे हैं और इस मामले को ध्यान में रखेंगे।

बीते साल 30 अगस्त को मामले की सुनवाई कर रही पांच जजों की बेंच में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, सूर्य कांत, एमएम सुंदरेश और सुधांशु धूलिया शामिल थे। इस बेंच ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को नोटिस जारी कर मामले पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा था। इसके कुछ समय बाद 23 सितंबर और 16 अक्टूबर को क्रमश: जस्टिस बनर्जी और जस्टिस गुप्ता रिटायर हो गए थे। जिसकी वजह से बहुविवाह और निकाह हलाला के खिलाफ लगीं 8 याचिकाओं की सुनवाई के लिए नई बेंच के गठन की जरूरत पड़ गई थी। बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय समेत कुछ मुस्लिम महिलाओं नायसा हसन, शबनम, फरजाना, समीना बेगम और मोहसिन कथिरी ने बहुविवाह और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए याचिका दायर की हैं। 

इन सभी याचिकाओं में मुस्लिम समाज की इन प्रथाओं को असंवैधानिक और अवैध करार दिए जाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बहुविवाह और निकाह-हलाला जैसी प्रथाओं से मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। शरिया या मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, बहुविवाह में एक मुस्लिम शख्स को चार पत्नियां रखने का अधिकार है। वहीं, निकाह हलाला की प्रक्रिया में एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को अपने शौहर से दोबारा शादी करने के लिए पहले किसी अन्य शख्स से शादी करनी होती है और फिर उससे तलाक लेना होता है। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में इस याचिका पर सुनवाई करने का फैसला लिया था। जिसके बाद ऐसी ही अन्य याचिकाओं को संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया गया था।

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