नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण के सामने आने के बाद से दुनिया भर में 50 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है और लॉकडाउन की वजह से कम से कम 40 खरब डॉलर के उत्पादन का आर्थिक नुकसान दुनिया को उठाना पड़ा है। इसके अलावा आज भी कोराना संक्रमण से उबरे लोग तरह-तरह के साइड इफैक्ट झेल रहे हैं। महामारी के बरपे कहर को झेलते हुए आज लगभग दो साल होने को आए हैं, लेकिन संक्रमण के दीर्घकालिक असर समझने के प्रयास कम नहीं हुए हैं। अब एक अंतरराष्ट्रीय शोध में सामने आया है कि कोविड संक्रमण की वजह से भारतीयों की जिंदगी में दो साल की कमी आ गई है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडी के मुताबिक भारतीय पुरुषों की औसत जिंदगी पहले 69।5 हुआ करती थी, जो कोरोना काल के सन् 2020 में घटकर 67।5 साल रह गई है। भारतीय महिलाओं की औसत जिंदगी 72 साल घटकर 69।8 साल पर आ गई है। मेडिकल भाषा में जिंदगी के औसतकाल को 'जीवन प्रत्याशा' कहते हैं, जिसका आशय जीवन के उस औसत काल से होता है जितने वक्त तक जीने की संभावना होती है। ऐसे में इस नई स्टडी में विभिन्न वय के जीवनकाल में आए बदलाव पर भी नजर डाली गई, तो पता चला कि 35 साल से 69 साल के उम्र में पुरुषों के मरने की दर सबसे ज्यादा थी। विशेषज्ञों के अनुसार 2020 में कोविड की वजह से इस एजग्रुप में ज्यादा मौतें हुईं और उसकी वजह से जीवन प्रत्याशा में खासी गिरावट आई है। ऐसे में आईआईपीएस की यह स्टडी देश में कोविड-19 से मृत्यु दर के पैटर्न में आए बदलाव को जानने के लिए की गई। आंकड़ों की भाषा में बात करें तो कोविड के चलते पिछले सालों के मुकाबले कहीं ज्यादा मौतें हुई हैं। केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2020 से अबतक साढ़े चार लाख मौतें हो चुकी हैं।
इस स्टडी में 145 देशों में हुई ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा कोविड इंडिया एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस पोर्टल के जरिए भी जीवन प्रत्याशा का विश्लेषण किया गया। स्टडी में पता चला कि दुनियाभर के देशों की मृत्यु दर पर कोविड का जो प्रभाव पड़ा है, उसके लिहाज से भारत बीच में आता है। इंग्लैंड और वेल्स, अमेरिका में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में एक साल से ज्यादा की कमी आई है। स्पेन में जीवन प्रत्याशा 2।28 साल तक घट गई है। अगर स्वास्थ्य मंत्रालय के कोविड आंकड़ों को देखा जाएगा तो औसत जीवनकाल में दो साल की कमी बहुत ज्यादा है।