नई दिल्ली। तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने तीसरी बार पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनने के बाद विपक्षी एकता की कोशिश शुरू की है। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले वे बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों का मोर्चा बनाना चाहती हैं। ममता बनर्जी ने विपक्ष को साथ लाने की मुहिम तो शुरू कर दी है लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठने लगा है कि उनको इसमें कितनी कामयाबी मिलेगी? इसकी वजह यह है कि वे पहले भी ऐसी कोशिश कर चुकी हैं। लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। यह सही है कि ममता बनर्जी अब बंगाल में जीत की हैट्रिक बनाने और बीजेपी की आक्रामक रणनीति का ठोस जवाब देने की वजह से पहले के मुकाबले मजबूत स्थिति में हैं। लेकिन फिर वही सवाल सामने है जिस पर पहले भी विपक्षी एकता में दरार पैदा होती रही है। वह है कि इस फ्रंट का मुखिया कौन होगा? लाख टके के इस सवाल के साथ ही वे अगले सप्ताह तीन-चार दिनों के दिल्ली दौरे पर जाएंगी। वहां तमाम विपक्षी नेताओं के साथ उनकी बात-मुलाकात होनी है।
वैसे राजनीतिक हलकों में तो यह पहले से ही माना जा रहा था कि बेहद प्रतिकूल हालात में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत की स्थिति में ममता विपक्षी एकता की धुरी बन कर उभर सकती हैं। बीजेपी ने जिस तरह अबकी बार दो सौ पार के नारे के साथ चुनाव में अपने तमाम संसाधन झोंक दिए थे उससे ममता के सत्ता में लौटने की राह पथरीली नजर आ रही थी। लेकिन आखिर में ममता ने अकेले अपने बूते बीजेपी को न सिर्फ धूल चटाई बल्कि पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें भी हासिल की। हालांकि नंदीग्राम सीट पर वे खुद चुनाव हार गईं। लेकिन फिलहाल वह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट में है।
ममता बनर्जी ने 21 जुलाई को अपनी सालाना शहीद रैली में पहली बार विपक्षी राजनीतिक दलों से बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की अपील की थी। बंगाल से बाहर निकलने के कवायद के तहत तृणमूल कांग्रेस ने उनकी इस रैली का दिल्ली, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात तक प्रसारण किया। खास बात यह रही कि पहली बार ममता ने अपना ज्यादातर भाषण हिंदी और अंग्रेजी में दिया। बीच-बीच में वे बांग्ला भी बोलती रहीं। अमूमन पहले वे ज्यादातर भाषण बांग्ला में ही देती थीं।