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विपक्ष ने मोदी सरकार पर उठाये सवाल, कहा- किसानों की गरदन पर हाथ डाल...

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 18 2020 12:19AM | Updated Date: Sep 18 2020 12:20AM
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नई दिल्ली। विपक्ष ने सरकार पर गुरुवार को आरोप लगाया कि उसने देश के किसानों की गरदन पर हाथ डाला है और वह संसद में पूर्ण बहुमत एवं कोविड की परिस्थिति का बेजा फायदा उठा कर देश में खेती का सत्यानाश करने पर आमादा है। लोकसभा में कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सरलीकरण) अध्यादेश 2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020 के स्थान पर पेश विधेयकों पर चर्चा में भाग लेते हुए विपक्ष ने ये आरोप लगाये।
 
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 को एकसाथ चर्चा के लिए रखते हुए कहा कि ये विधेयक किसान के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले हैं। इससे खेती लाभप्रद बनेगी। गत दिनों कृषि क्षेत्र में लागू योजनाओं के लिए कानूनी प्रावधान करने जरूरी हैं।
 
तोमर ने कहा कि देश का किसान मंडियों की जंजीरों से बंधा हुआ है। ये विधेयक किसानों को आजादी दिलाने वाले हैं। इनसे राज्यों के कृषि उत्पाद विपणन समिति कानून का किसी प्रकार से अतिक्रमण नहीं होता है और ना ही इनसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कोई फर्क पड़ेगा। एमएसपी थी, है और रहेगी। गांवों में खेतों में निजी निवेश आएगा और रोजगार बढ़ेगा। चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि कांग्रेस के रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा कि सरकार जुबानी आश्वासन दे रही है कि एमएसपी एवं मंडी की व्यवस्था बरकरार रहेगी लेकिन विधेयकों में एमएसपी की गारंटी की बात कहीं नहीं लिखी है।
 
उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों के गले पर हाथ डाला है। उन्होंने सरकार के दावों को जÞमीनी स्तर पर गैरव्यवहारिक बताते हुए कहा कि जून में अध्यादेश आने के बाद मक्के की फसल आयी है। मक्के की एमएसपी 1700 रुपए है लेकिन बाजार में मक्का 700 रुपए के भाव पर बिक रहा है। अगर ये विधेयक इतने लाभकारी हैं तो मक्का किसान परेशान क्यों है। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में ये अध्यादेश विफल साबित हुए हैं।
 
बिहार में मंडी व्यवस्था खत्म करने वहां के किसानों को अपनी जÞमीन छोड़ कर पंजाब हरियाणा में मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि मंडी की व्यवस्था से पंजाब को गत वर्ष 3631 करोड़ रुपए की आय हुई। इससे किसानों को फसलों के नुकसान पर क्षतिपूर्ति की जाती है। उन्होंने कहा कि विधेयक के अनुसार किसानों को निजी खरीददारों से तीन दिन में भुगतान की बात कही गयी है जबकि भारतीय खाद्य निगम 48 घंटे में भुगतान करता है।
 
तीन दिन बाद किसान खरीददार को कहां ढूंढ़ेगी। बिट्टू ने कहा कि कोविड काल में जो कंपनियां अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रहीं हैं, वे किसान से अच्छे दामों पर उनकी फसल कैसे खरीदेंगी। उन्होंने कहा कि पंजाब में जवान चीन और पाकिस्तान की सीमा पर बलिदान दे रहा है लेकिन सरकार उनके बलिदान का आदर करने की बजाए शोषण कर रही है।
 
उन्होंने कहा कि कृषि समवर्ती सूची है लेकिन संसद में कानून बनाया जा रहा है। वस्तु एवं माल कर (जीएसटी) के बाद मंडी भी बंद कर देंगे तो राज्य क्या करेंगे। सब कुछ केन्द्र अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने ठेका खेती की अनुमति का विरोध करते हुए कहा कि 15 साल पहले पेप्सिको ने पंजाब में आलू की खरीद शुरु की तो जब फसल कम हुई तो सारा आलू आराम से खरीदा लेकिन जब बंपर पैदावार हुई तो कड़े से नाप कर आलू छांटे और कहा कि इससे बड़े आलू मधुमेह की बीमारी करते हैं इसलिए नहीं लेंगे।
 
बाद में किसानों से 40 प्रतिशत कीमत देकर वे आलू भी खरीदे। ऐसे ही अगर दस-दस या 15-15 साल के करार हुए तो किसान मरेगा नहीं तो अधमरा हो जाएगा। रेवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी के एन के प्रेम चंद्रन ने कहा कि सरकार इन विधेयकों के माध्यम से देश की कृषि व्यवस्था को कुचलना चाहती है।
 
वह कोविड महमारी के माहौल का बेजा फायदा उठा कर देश में खेती का सत्यानाश करना चाहती है। अगर कोरोना की परिस्थिति नहीं होती तो देश में किसानों का एक बड़ा आंदोलन दिखायी देता। एक देश एक बाजार की व्यवस्था देश के हित में नहीं है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वे विधेयकों को संसदीय स्थायी समिति के पास विचार के लिए भेजे। 
 
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