नई दिल्ली। हिन्दी भाषा को आधुनिक स्वरूप ग्रहण करने के लिए अंग्रेजी, उर्दू तथा अन्य भाषाओं के शब्दों को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए जिससे उसका विकास एवं विस्तार समय और आवश्यकता के अनुरूप हो सके। लगभग तीन दशक से लेखन कर रहे कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त आलोक यादव का कहना है कि किसी भी भाषा के विकास के लिए समय की जरूरतों के अनुरूप उसका विकास होना आवश्यक है। हिन्दी भाषा भी इसका अपवाद नहीं है।
हिन्दी को अपने विकास एवं विस्तार के लिए अन्य भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करना चाहिए और उन्हें अपने व्याकरण के ढांचे में समाहित कर लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण के इस दौर में प्रौद्योगिकी और विज्ञान के शब्दों का भाषांतरण कई बार हास्यास्पद होता है और यह पूरे भाव भी प्रदर्शित नहीं करता। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान तथा विशेष शब्दों को ग्रहण करने से हिन्दी भी समृद्ध होगी और उसकी सम्प्रेषणता भी बढ़ेगी।
भूमंडलीकरण में दूरियों का कोई महत्व नहीं है और इसे बेहतर तरीके से समझा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिन्दी पूरी तरह से वैज्ञानिक भाषा है और इसमें समस्त भावों तथा विचारों को व्यक्त करने की क्षमता है लेकिन इसे अनुवाद की भाषा बनाने से बचना चाहिए। देश की हिन्दी और उर्दू भाषी प्रमुख पत्रिकाओं तथा समाचार पत्रों में लेखन करने वाले यादव का कहना है कि हिन्दी को क्षेत्र और समय में नहीं बांधा जाना चाहिए बल्कि विस्तार के लिए उसे उन्मुक्त होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि देवनागरी में गजल का स्वागत होना चाहिए, इससे भाषा समृद्ध होगी। मूल रूप से कवि एवं गजलकार यादव ने कहा कि कविता का आधार भाव, कल्पना और अध्यात्म है। इसमें गेयता और लय अनिवार्य तत्व है। मात्र शब्दों का संयोजन कविता या गजÞल नहीं है। उन्होंने अतुकांत कविता को कविता मानने से इंकार करते हुए कहा कि यह वास्तव में कवि की अक्षमता है।
जो लोग अतुकांत कविता के पक्ष में हैं, वास्तव में उनके पास विचारों और भावों की कमी है जिससे वे गद्य या निबंध नहीं लिख पाते हैं इसलिए वे अपने भावों को कविता का रूप देते हैं। कुछ शब्दों के संयोजन को कविता कहना ठीक नहीं है। उन्होंने रामायण, रामचरित मानस और महाभारत का उल्लेख करते हुए कहा कि विश्व के समस्त महान ग्रंथ गेय और लय में हैं।