नई दिल्ली। ब्लैक फंगस कोरोना से जुड़े उपचार के दौरान या उससे उबरने के बाद अपना शिकंजा कसता है। देश में कोरोना महामारी के बीच ब्लैक फंगस जैसी बीमारियों ने भी कम तबाही नहीं मचाई है। कोविड-19 से रिकवर होने वाले कुछ मरीजों में एवैस्क्लुर नेक्रोसिस (AVN) यानी बोल डेथ के मामले देखे जा रहे हैं. कोरोना वायरस के मरीजों को दिए जा रहे स्टेरॉयड्स से अभी तक ब्लैक फंगस के खतरे की बात सामने आई थी, लेकिन अब इसके कारण नई समस्या पैदा हो रही है। ज्यादा स्टेरायड्स देने के चलते कोविड से उबरने वाले लोगों के लिवर (Liver) में कई बड़े फोड़े हो रहे हैं। डॉक्टर्स ने इस बात की जानकारी दी है। लिवर में फोड़ा होना या फिर पस का जमा हो जाना आमतौर पर एक परजीवी के कारण होता है जिसे एंटामोइबा हिस्टोलिटिका के तौर पर जाना जाता है जो दूषित भोजन और पानी से फैलता है।
नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड पैन्क्रियाटिकोबिलरी साइंसेज के चेयरमैन डॉ। अनिल अरोड़ा के मुताबिक "जो एक चीज हमें असामान्य लगी वह ये कि कोविड से उबरने के 22 दिन बाद जो कि पहले से ही असुरक्षित थे, को लिवर के दोनों ओर बड़े हिस्से में कई जगहों पर पस भरा हुआ था जिसे निकालने के लिए अस्पताल में भर्ती किया जाना जरूरी था।"
हालांकि अब तक इस तरह की समस्या के कितने मामले आ चुके हैं इसकी जानकारी नहीं मिली है। बता दें कोविड से उबर चुके लोगों को कई अन्य परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक कोविड से ठीक होने वाले मरीज न्यूरो संबंधी शिकायतें भी कर रहे हैं। लेंसेट जर्नल में प्रकाशित हालिया अध्ययन से मालूम चलता है कि 33 फीसद को न्यूरोसायकेट्रिक दिक्कतें हो रही हैं। इसमें स्वाद-गंध का जाना, भ्रम, ध्यान लगाने में परेशानी, जैसी परेशानियां शामिल हैं।
वहीं इससे कुछ दिन पहले कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों में कई अन्य परेशानियां भी देखी गई थीं। इन मरीजों में ठीक होने के 20-30 दिनों के बाद पेट में दर्द और मल में रक्तस्राव की शिकायतें देखी गई थीं। बता दें देश भर में अब तक कोविड से उबरे लोगों में सबसे ज्यादा ब्लैक फंगस के मामले देखे गए हैं। ब्लैक फंगस के बारे में कहा जा रहा है कि ये आमतौर पर कोरोना के दौरान मरीजों के स्टेरॉयड के ज्यादा सेवन से होता है। ब्लैक फंगस संक्रमण कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वालों को होता है। कोरोना के हमले के कारण कमजोर हो चुके लोगों में ये फंगल इंफेक्शन भी बढ़ा है। जबकि पहले ये बीमारी कीमोथेरेपी, अनियंत्रित शुगर, किसी भी तरह के ट्रांसप्लांट से गुजरने वाले लोगों और बुजुर्गों को ज्यादा प्रभावित करती थी।