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जलवायु परिवर्तन ने सेब का रंग किया फीका, आम हुआ बीमार

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 15 2020 1:30PM | Updated Date: Jul 15 2020 1:31PM
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नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में उतार-चढ़ाव, अनियमित वर्षा, बाढ़ और सूखे की समस्या का घातक असर बागवानी फसलों पर दिखने लगा है। आम, जामुन, सेब, लीची, अनार, खुबानी जैसी बागवानी फसलों पर शोध के दौरान जलवायु परिवर्तन का असर देखा गया है। कुछ क्षेत्रों में सेब का उत्पादन घट रहा है जबकि कुछ स्थानों पर यह बढ़ रहा है। सेब में आकर्षक लाल रंग नहीं आ पा रहा है। कुछ फलों में फटने की शिकायत आ रही है जबकि कुछ स्थानों पर बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया है जो फलों को बदसूरत बनाते हैं।
 
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ के निदेशक शैलेन्द्र राजन के अनुसार तापमान में उतार-चढ़ाव और वातावरण में नमी की मात्रा के कारण कीड़ों और बीमारियों ने बहुत से आम को बदसूरत कर दिया। बेमौसम बारिश के कारण, तापमान तुलनात्मक रूप से कम रहा और आम की फसल के पूरे मौसम में हवा में नमी  अधिक रही जिसके कारण इस साल आम के फल की त्वचा को प्रभावित करने वाले कीटों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ा। तापमान में उतार-चढ़ाव और भारी गिरावट के बाद धूप वाले दिन के कारण सापेक्ष आर्द्रता में तेज बदलाव हुआ। वे किसान जो उचित कवकनाशी का छिड़काव नहीं करते हैं, वे उपर्युक्त समस्याओं के कारण सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
 
डॉ. राजन ने बताया कि इस साल जामुन की फसल बहुत से स्थानों पर अच्छी नहीं हुई और कहीं-कहीं पर तो कोई भी फल नहीं आए । वैसे भी सभी जामुन की किस्में सब जलवायु में समान रूप से नहीं चलती हैं । कहीं फसल अच्छी होती है और कहीं बिल्कुल भी फल नहीं आते हैं । जलवायु परिवर्तन का असर जामुन की फसल पर इस बार देखने को मिला। जनवरी से लगातार हो रही बारिश और ठंड ने अधिकतर पेड़ो में फूल की जगह पत्तियों वाली टहनियों को प्रेरित किया। आमतौर पर जाड़े का मौसम कुछ ही दिन में खत्म हो जाता है।
 
मौसम के आंकड़ों के आधार पर ही कहा जा सकता है कि इस वर्ष लगातार कुछ दिनों तक ठंड, तत्पश्चात तुरंत तापक्रम के बढ़ जाने से जामुन में बहुत से स्थान पर फूल भी नहीं आए । सावंतवाड़ी (कोंकण, महाराष्ट्र) जामुन के लिए मशहूर है परंतु इस वर्ष किसानों को फल न लगने से नुकसान उठाना पड़ा । जलवायु परिवर्तन का जामुन के उत्पादन पर एक विशेष प्रभाव देखा गया । जब पेड़ों पर फूल आते हैं, उस समय पत्तियां निकली जिसके परिणाम स्वरूप उपज बहुत कम हो गई।
 
केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान बीकानेर के वैज्ञानिक विजय आर रेड्डी के अनुसार सेब के लिए कम तापमान होने से हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी और शिमला जिले के निचले इलाकों में सेब उत्पादन क्षेत्र घटता जा रहा है जबकि लाहौल स्पीति घाटी में बढ़ता जा रहा है । कश्मीर घाटी के निचले इलाके में भी सेब उत्पादन क्षेत्र में कमी आने की खबर आ रही है। तापमान बढ़ने के कारण सेब , बादाम, चेरी आदि में कलियां दो-तीन सप्ताह पहले निकल जाती है जो मार्च में अचानक बर्फ गिरने से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
 
तापमान बढ़ने से चेरी और खुबानी के क्षेत्र में कमी आ रही है। शोध में यह पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सेब में वह आकर्षक लाल रंग नहीं आ पा रहा है जो वर्षों पहले आता था । सेब में यह रंग एंथोसायनिन के कारण आता है। एंथोसायनिन के विकास के लिए सेब को तोड़ने के पहले तापमान न केवल बहुत कम होना चाहिये बल्कि उसमें उतार-चढ़ाव न के बराबर होना चाहिये। सनबर्न के कारण सेब और अनार की फसल को क्षति हो रही है। तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण अनार , लीची , अंजीर , चेरी और नींबू वर्गीय फलों में फटने की समस्या उत्पन्न हो रही है । वर्ष 2055 तक संतरे के बागवानी क्षेत्र में वृद्धि होने तथा नींबू के क्षेत्र में कमी आने की आशंका है। 
 
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