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जयसूर्या को छिंदवाड़ा की जड़ी बूटियों से मिला नया जीवन, 72 घण्टों में खड़े हुए पैरों पर

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 30 2021 9:56PM | Updated Date: May 30 2021 9:56PM
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कोलम्बो। श्रीलंका क्रिकेट टीम के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी सनत जयसूर्या ने अपने कमर एवं पैर में आई कुछ गंभीर बीमारियों के चलते बिस्तर पकड़ लिया था, यदि उनको थोड़ा बहुत चलना भी पड़ा तो बैशाखी का सहारा लेते थे। इस बीमारी के चलते जयसूर्या ने आस्ट्रेलिया (मेलबोर्न) में न सिर्फ आपरेशन कराया बल्कि श्रीलंका के कोलंबो स्थित नवलोक अस्पताल में भर्ती भी रहे। किन्तु इन्हें कहीं से भी राहत नहीं मिली।
 
जयसूर्या की इस हालत को देख भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरूदीन ने आयुर्वेद जड़ी बूटियों  से इलाज करने वाले डॉ. प्रकाश टाटा से एक बार इलाज कराने की सलाह दी। अजहरूदीन की सलाह मान जयसूर्या मुम्बई आए एवं डॉ. टाटा के निवास स्थान पर गए और अपनी बीमारी से उन्हें अवगत कराया जिसके बाद डॉ. टाटा ने उनका परीक्षण किया और ठीक करने से संबंधित आश्वासन दिया।
 
डॉ टाटा भलीभांति इस बात को जानते थे, कि जयसूर्या इस बीमारी से निजात पाने आस्ट्रेलिया एवं श्रीलंका में इलाज करा चुके हैं। किन्तु उन्हें राहत नहीं मिल पाई है। जयसूर्या को वापिस श्रीलंका भेज दिए और ये पातालकोट के जंगलों में वैद्यराज माखन विश्वकर्मा के साथ। पतालकोट के घने जंगलों में गए और एक सप्ताह वहॉ रुककर जड़ी-बूटी तलाश की एवं वहां से जड़ी-बूटी निज निवास लाकर छिंदवाड़ा में दवाईयां बनाई।
 
छिंदवाड़ा से 78 किलोमीटर दूर पातालकोट की घाटी विभिन्न जड़ी बूटियों से भरी हुई है। यहाँ औषिधीय गुण वाली कई ज्ञात और अज्ञात दुर्लभ जड़ी बूटियों का भंडार है। 89 वर्ग किलोमीटर में फैली पातालकोट की घाटी की धरातल 1700 फीट की गहराई में है। यहाँ की जटिलताओं का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ सूर्य की किरणें दोपहर में पहुंचती हैं । इस विहंगम घाटी में गोंड और भारिया जनजाति निवास करते हैं। यहां के जनजाति अपने विशिष्ट प्रकार जड़ी बूटियों के जरिये असाध्य रोगों के इलाज के लिए भी जाने जाते हैं।
 
तो इस घाटी से जड़ी-बूटियों की आवश्यक दवाओं को एकत्रित कर डॉ. प्रकाश टाटा सहयोगीजन जय हो फाउंडेशन के अध्यक्ष तरूण तिवारी के साथ श्रीलंका रवाना हो गए।उन्होंने  श्रीलंका पहुंचने के पश्चात जयसूर्या का इलाज प्रारंभ किया एवं महज 72 घण्टे का समय लिया एवं जयसूर्या को उनके पैरों पर खड़ा कर दिया। जो काम मेलबोर्न  नहीं कर सका वो छिंदवाड़ा ने कर दिया।
 
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