भारत को आगामी 2027 तक पूरी तरह डीजल गाड़ियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध (Diesel Vehicle Ban) लगा देना चाहिए और डीजल गाड़ियों के बजाय लोगों को इलेक्ट्रिक और गैस से चलने वाले वाहनों पर फोकस करना चाहिए। ये सुझाव पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा गठित एक पैनल ने सरकार को दिया है। पैनल ने शहरों के आबादी के अनुसार डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का प्लान बनाया है। जिसके अनुसार दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में इलेक्ट्रिक और गैस से चलने वाले वाहनों पर स्विच करना चाहिए। क्योंकि ऐसे शहरों में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है।
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा गठित एक पैनल इलेक्ट्रिक और गैस से चलने वाले वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने की सिफारिश कर रहा है। पेट्रोलियम एंव प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर पोस्ट की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत, ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जकों में से एक है। सैकड़ों पन्नों की इस रिपोर्ट में भारत के एनर्जी ट्रांजिशन का पूरा प्लान बताया गया है।
इसके अनुसार, भारत आगामी 2070 के शुद्ध शून्य लक्ष्य को प्राप्त करने के अपने लक्ष्य पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन इसके लिए कुछ ख़ास तैयारियों की जरूरत होगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि, आगामी 2024 से सिटी ट्रांसपोर्टेशन में कोई भी डीजल बसें नहीं जोड़ी जानी चाहिए और 2030 तक ऐसी किसी भी सिटी बस को शामिल नहीं किया जाना चाहिए जो कि इलेक्ट्रिक नहीं हैं।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि, भारत बड़े पैमाने पर ऊर्जा आयात पर निर्भर नहीं रह सकता है और उसे अपने स्वयं के स्त्रोतों का विकास करना चाहिए। भारत के प्राथमिक ऊर्जा स्रोत कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस और परमाणु हैं। हालांकि बायोमास एनर्जी का एक अन्य स्रोत है, लेकिन इसका उपयोग कम हो रहा है। कोयला ग्रिड बिजली के उत्पादन के लिए प्राथमिक ऊर्जा स्रोत है और इसका उपयोग स्टील और सीमेंट जैसे भारी उद्योगों द्वारा किया जाता है। हालांकि कोयला भारत में भारी मात्रा उपलब्ध है, लेकिन अभी भी देश में तेल और गैस के भंडार की खोज किया जानी बाकी है।
इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि, आगामी 2027 तक देश में ऐसे शहर जहां की आबादी 10 लाख से अधिक है या जिन शहरों में प्रदूषण का स्तर ज्यादा है, वहां पर डीजल वाहनों पर पूरी तरह से बैन लगा देना चाहिए। इसके अलावा 2030 तक सिटी ट्रांसपोर्ट में केवल उन बसों को शामिल किया जाए जो कि इलेक्ट्रिक से चलती हैं। पैसेंजर कार और टैक्सी वाहन 50 फीसदी पेट्रोल और 50 फीसदी इलेक्ट्रिक होने चाहिए। बताया जा रहा है कि, 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 1 करोड़ यूनिट प्रतिवर्ष का आंकड़ा पार कर लेगी।
देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए, रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को 31 मार्च से आगे के लिए फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक एंड हाइब्रिड व्हीकल्स स्कीम (FAME) के तहत दिए गए प्रोत्साहनों के विस्तार पर विचार करना चाहिए। भारत में लंबी दूरी की बसों को इलेक्ट्रिफाइड करना होगा, हालांकि अभी गैस को 10-15 वर्षों के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारत में डीजल की मांग काफी ज्यादा रही है, डीजल वर्तमान में भारत के पेट्रोलियम उत्पादों की खपत का लगभग 40% है। डीजल की खपत 2011 में 60।01 एमएमटी से बढ़कर 2019 में 83.53 एमएमटी हो गई थी। हालांकि साल 2020 और 2021 में कोरोना महामारी और ट्रांसपोर्टेशन में आई कमी के चलते खपत क्रमश: 82.60 और 72.71 एमएमटी रही। इसके वित्तीय वर्ष 2023 में 79.3 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। पैसेंजर वाहनों में तकरीबन 16.5% डीजल की खपत होती है, जो कि 2013 के 28.5% के मुकाबले काफी कम हुई है।
मारुति सुजुकी ने पहले ही 2020 में अपने पोर्टफोलियो से डीजल वाहनों को बाहर कर दिया है। जबकि टाटा, महिंद्रा और होंडा ने भी 1.2-लीटर डीजल इंजन का उत्पादन बंद कर दिया है और अब डीजल वैरिएंट केवल 1.5-लीटर या अधिक की इंजन क्षमता वाले वाहनों में ही उपलब्ध है। Hyundai ने साल 2020 में Grand i10 NIOS और Aura मॉडल में 1.2-लीटर BS-VI डीजल वेरिएंट पेश किया, लेकिन 2022 से 1.2-लीटर डीजल वाहनों का उत्पादन बंद कर दिया है। ऐसे में डीजल वाहनों की उपलब्धता बाजार में न होने के कारण डीजल की खपत भी काफी कम हुई है।
पैनल ने कहा कि भारत को दो महीने की मांग के बराबर अंडरग्राउंड गैस भंडारण के निर्माण पर विचार करना चाहिए, क्योंकि 2020 और 2050 के बीच 9।78% की औसत वृद्धि दर से मांग बढ़ने की उम्मीद है। इसने विदेशी गैस उत्पादक कंपनियों की भागीदारी के साथ गैस भंडारण के निर्माण के लिए घटते तेल और गैस फिल्ड, सॉल्ट कैवर्नस और गैस स्टोरेज के उपयोग का सुझाव दिया गया है।