03 Dec 2024, 08:05:08 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android
Astrology

श्रावण मास में सुहागन महिलाए जरुर करे 1 काम, पति को करोड़पति बनने में नहीं लगेगा समय

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 5 2024 5:17PM | Updated Date: Aug 5 2024 5:17PM
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

एक बार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी क्षीर सागर में शेष नाग की शैया पर विश्राम कर रहे थे तभी गरुड़ उस स्थान पर आ जाते हैं और भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी से पूछने लगते हैं हे प्रभु मैं पृथ्वी लोक का भ्रमण करके आया हूं, मैंने देखा कि पृथ्वी लोक पर अनेक मनुष्य नित्य स्नान करते हैं। किन्तु फिर भी दुखी ही रहते हैं, उनके दुखी रहने का क्या कारण है। हे प्रभु आप मुझे बताइए की स्नान करने की सर्वोत्तम विधि क्या है, स्नान कब और कैसे करना चाहिए। स्नान करते समय कौन से मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। गरुड़ जी मां लक्ष्मी से भी पूछते हैं हे माता मैंने यह भी देखा है कि अनेक महिलाएं नित्य स्नान करके आपकी पूजा आराधना करती है। किन्तु फिर भी उनके घर में आपका वास नहीं होता है, इसका क्या कारण है। गरुड़ जी द्वारा इस प्रकार से प्रश्न पूछने पर भगवान विष्णु कहते हैं। हे पक्षी राज़ तुमने उचित ही प्रश्न किया है स्नान करना अत्यंत आवश्यक होता है। स्नान से ही शरीर शुद्ध होता है। स्नान करने से ही शरीर पवित्र होता है और मनुष्य पूजा पाठ आदि कर्म करने के पात्र बनता है। मैं तुम्हें एक अत्यंत पवित्र कथा सुनाता हूं उसे तुम ध्यान से सुनो। इस कथा में तुम्हें तुम्हारे सभी प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो जाएंगे।

भगवान विष्णु कहते हैं हे पक्षी राज़ प्राचीन काल की बात है। मध्य देश में एक अत्यंत सुंदर नगर था जहां पर एक धनवान सेठ रहता था जिसकी तीन पुत्रियां थी। सेठ ने अपनी पुत्रियां को कभी किसी चीज़ की कमी होने नहीं दी। उसने उन्हें बड़े लाड प्यार से पाला था। उसकी पुत्रियां बहुत ही सुंदर और चंचल स्वभाव की थी। एक पिता का जो जो कर्तव्य होता है वह सभी उस सेठ ने पूर्ण किया। अपनी पुत्रियों को उसने सब कुछ दिया, लेकिन उसने केवल एक गलती की। उसने अपनी पुत्रियों को शास्त्र ज्ञान नहीं दिया। जीवन में सब कुछ पाकर भी उसकी पुत्रियों का जीवन अधूरा था। ज्ञान के बिना कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं होता है। पैसा, संपत्ति, सौंदर्य होकर भी उसकी पुत्रियों के पास वो नहीं था जो प्रत्येक स्त्री के पास होना चाहिए। फिर जब उसकी तीनों पुत्रियां जवान हुई तो सेठ ने उसकी तीनों पुत्रियों का विवाह एक अच्छे कुल में कर दिया। तीनों के पति बड़े बड़े व्यापारी थे और सभी राजमहल में रहने के लिए चली गई। जैसे ही तीनों रहने के लिए अपने घर चली गई वहां पर उनका भव्य दिव्य स्वागत किया गया। 

विवाह के बाद की सभी रस्में की गई और उन तीनों के ससुराल वालों ने उन्हें बहुत मान सम्मान दिया और सभी के साथ प्रेम से व्यवहार किया। वे तीनों अपने ससुराल में बड़े ही मौज से रहने लगीं। तीनों सुबह देर से जागती थी। देर से स्नान करती थी, बिना स्नान किए ही भोजन किया करती थी और कभी कभी ही पूजा पाठ किया करती थी। उनकी सास ने उन्हें कई बार टोका, लेकिन किसी ने अपनी सास की बात नहीं मानी और अपनी ही मनमानी करने लगी। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया उन तीनों पुत्रियों के ससुराल में परेशानियां बढ़ने लगी। तीनों के पत्तियों को व्यापार में आर्थिक नुकसान होने लगा और धीरे धीरे उनका सारा व्यापार डूबने लगा। दूसरों से कर्ज लेकर वे अपने व्यापार को चलाने लगे। लेकिन फिर भी उन्हें घाटे का ही सामना करना पड़ा जिससे घर में क्लेश होने लगा। बार बार लड़ाई झगड़े होने लगे। जब से ये तीनों उन घरों में रहने के लिए चली गई थी तभी से उनके घर में संकट आने शुरू हो गए थे। उन तीनों बहनों के ससुराल में पैसे की इतनी तंगी हुई कि उन्हें अपना घरबार सब कुछ बेचना पड़ा। वे सभी झोपड़ी में जाकर रहने लगे लेकिन वे तीनों बहनें झोपड़ी में रहना पसंद नहीं करती थीं इसीलिए वे अपने ससुराल को छोड़कर मायके में वापस आ गई और अपने पिता के साथ रहने लगी। 

अपने घर पर आकर भी उन तीनों की आदत नहीं बदली और घर पर आकर भी वह तीनों बहनें बड़े मौज से रहने लगी। वहां पर भी वे तीनों देर से उठती थी। देर से स्नान करती थी। बिना स्नान किए ही भोजन किया करती थी। जिस कारण से उनके पिता को भी व्यापार में नुकसान होने लगा और उसकी भी आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। फिर एक दिन उनके द्वार पर भगवान विष्णु एक साधु का रूप धारण करके आ गए। सेठ ने उस साधु का प्रेम से स्वागत किया और उनके पैर धोकर उन्हें प्रणाम किया। फिर सेठ ने उस महान साधु को अपना दुख बताया और उस पर निवारण करने के लिए उपाय पूछा। 

सेठ ने अपनी पुत्रियों को भी बुलाया और साधु को उनके बारे में भी सारी हकीकत बता दी। जैसे ही उस साधु ने सेठ की तीनों पुत्रियों की तरफ देखा तो उन्हें सारी हकीकत पता चली। उन तीनों बहनों के चारों ओर नकारात्मक शक्ति का घेरा बना हुआ था, जो उनके साथ ही चल रहा था। वे जहां पर भी जाती वह नकारात्मक ऊर्जा उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी। उस सिद्ध साधु ने उस सेठ से कहा तुम्हारी तीनों बेटियों की आदतों के कारण उनके चारों ओर नकारात्मक ऊर्जा का घेरा बना हुआ है। इसी कारण से ये जहां पर भी जा रही है वहां पर केवल दुख और संकट आ रहे हैं। तुम्हारी तीनों पुत्रियां अत्यंत आलसी हैं। ये देर से जागती है, देर से स्नान करती है, बिना स्नान की यही भोजन करती है और यही वजह है कि उनके जीवन में ये संकट आ रहे हैं। 

फिर उस साधु ने उस सेठ को और उनकी पुत्रियों को अत्यंत महत्वपूर्ण ज्ञान दिया और उसका नित्य पालन करने के लिए कहा। भगवान विष्णु कहते हैं, हेवत्स स्नान के चार प्रकार होते हैं ब्रह्म स्नान, देव स्नान, आरशि स्नान, मानव स्नान और दानव स्नान। इन्हें समय के अनुसार वर्गीकृत किया गया है। शास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने वाले स्नान को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। देव स्नान सुबह 5-6 बजे के बीच किया जाने वाला स्नान देव स्नान कहलाता है। मानव स्नान सुबह 6-8 बजे के बीच में किया जाने वाला स्नान। यह स्नान सूर्योदय के समय या सूर्योदय के ठीक बाद में किया जाता है। सुबह 8:00 बजे के बाद स्नान करने से व्यक्ति के जीवन में दुर्भाग्य आता है। उसके शरीर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होने लगता है। ऐसा मनुष्य जिस स्थान पर भी जाता है उसके साथ दुर्भाग्य चला आता है। तुम्हारी ये तीनों पुत्रियां सुबह देर से स्नान करती थी। जिस कारण से उनके ससुराल की सारी संपत्ति नष्ट हो गई और अब तुम्हारी भी धन सम्पत्ति नष्ट हो रही है। 

स्नान करते समय जपे ये मंत्र

भगवान विष्णु कहते हैं, हे वत्स। अब मैं तुम्हें स्नान करते समय बोले जाने वाले अत्यंत महत्वपूर्ण मंत्र के बारे में बताने जा रहा हूं। इसे ध्यान से सुनो, जो भी इस मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान करता है, उसके सभी पाप उसी क्षण नष्ट हो जाते हैं। उसका दुर्भाग्य भी नष्ट हो जाता है और उसे सुख समृद्धि प्राप्त होती है। वह मंत्र इस प्रकार है। गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।

इसका अर्थ है हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी मां मेरे स्नान करने के जल में कृपया आप सभी पधारिये इस मंत्र के उच्चारण से सभी तीर्थ स्थानों में स्नान करने का पुण्य मिलता है। इस प्रकार से भगवान विष्णु ने उस सेठ को स्नान का महत्त्व बताया।

सेठ की तीनो पुत्रियों को अपनी गलती समझ में आ गई। वे तीनों अपने अपने ससुराल में रहने के लिए चली गयी और भगवान विष्णु द्वारा बताए गए स्नान के सभी नियमों का पालन करने लगी। तीनों सुबह ब्रह्म मुहूर्त में जागकर स्नान करने लगी और नित्य सूर्य को जल देने लगी। सुबह नित्य स्नान करने से उनका शरीर पवित्र हो गया और वह नकारात्मक ऊर्जा भी पूरी तरह से नष्ट हो गई। धीरे धीरे उनके पति का व्यापार भी ठीक से चलने लगा और उनका खोया हुआ सब कुछ उन्हें फिर से वापस मिल गया और तीनों बहनें बड़ी ही प्रसन्नता से अपने ससुराल में रहने लगी।

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »