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Astrology

श्रीमदभागवत का पठन पाठन पितृ दोष से दिलाएगा मुक्ति

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 30 2020 3:49PM | Updated Date: Aug 30 2020 3:50PM
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संतों और वेदाचार्यो का मत है कि परिवार की सुख समृद्धि के लिये और पितृ दोष से मुक्ति पाने का सर्वोत्तम उपाय पितृ पक्ष में श्रीमदभागवत का श्रवण,पठन या पाठन माना गया है। कान्हा नगरी के विश्व प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर के ज्योतिषाचार्य अजय तैंलंग ने रविवार को यूनीवार्ता को बताया कि सामान्यतय: परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के बाद जब उसका अंतिम संस्कार भलीभांति नही किया जाता है अथवा  जीवित अवस्था में उसकी कोई इच्छा अधूरी रह जाती है तो उसकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के बीच भटकती रहती है तथा मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है।
 
यह कष्ट व्यक्ति की जन्म कुंडली में भी झलकता है। यह कष्ट शारीरिक से ज्यादा मानसिक होता है। इन मानसिक कष्टों में विवाह में अड़चन, वैवाहिक जीवन में कलह, परिश्रम के बावजूद परीक्षा में असफलता, नौकरी का लगना और छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मौत,  मंद बुद्धि के बच्चे का जन्म होना,अत्याधिक क्रोध होना आदि प्रमुख हैं। इनमें से किसी के होने पर व्यक्ति के जीवन से आनन्द का लोप हो जाता है।
 
मशहूर भागवताचार्य रसिक बिहारी विभू महराज ने कहा कि पितृ दोष दूर करने के लिए हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि मृत्यु के बाद पुत्र द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म मृतक की वैतरणी को पार कर देता है। गुरूवार की शाम को पीपल की जड़ में जल देकर उसकी सात परिक्रमा करने, सूर्य की आराधना या गाय को गुड़ और कुत्ते को भोजन खिलाने से भी पितृ दोष में कमी आती है।
 
विभू महाराज ने कहा कि इन सबसे अधिक श्रीकृण की आराधना प्रभावशाली है, तभी तो गीता में श्रीकृष्ण ने खुद कहा है कि सर्व धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज अर्थात सभी परंपराओं और युक्तियों को छोड़कर जो व्यक्ति केवल श्रीकृष्ण की आराधना करता है उसके लिये बाधाएं अवसर में और कांटे फूल में बदल जाते हैं। अधिकांश ब्रजवासी चूंकि श्रीकृष्ण की किसी न किसी रूप में आराधना करते हैं। इसलिए व्रज में कोरोनावायरस संक्रमण का उस प्रकार से असर नही है जैसा दिल्ली या मुम्बई में है जहां चिकित्सा की सभी सुविधाएं मौजूद हैं। यहां मृत्यु दर भी एक प्रकार से इसी कारण से नगण्य है।
 
भगवताचार्य ने बताया कि श्रीमदभागवत श्रीकृष्ण का वांगमय है । यही नही श्रीमदभागवत श्रीकृष्ण के मुख से निकली वाणी है और जब संकट में भगवत वाणी का श्रवण होता है तो संकट स्वत: टल जाता है। राजा परिक्षित से जब ऋषि शमीक का अपमान हो गया और ऋगी ऋषि के कारण सात दिन में सर्पदंश से मृत्यु का श्राप मिला तो सभी ऋषि मुनियो एवं महापुरूषों ने श्राप से मुक्ति के जो उपाय बताये वे प्रभावहीन रहे और जब शुकदेव महराज ने उन्हें भागवत का परायण कराया तो कथा का विश्राम होते होते परीक्षित का भय दूर हुआ और उन्हें सदगति प्राप्त हुई।
 
विभू महराज ने इसी क्रम में धुन्धकारी के प्रेतयोनि में जाने की कथा का भी उल्लेख किया और बताया कि बार बार गया श्राद्ध करने के बावजूद धुन्धकारी की मुक्ति न हो सकी और वह प्रेत बन गया। मार्कण्डेय पुराण, गरूड़ पुराण एवं पितृ श्राद्ध से सम्बन्धित ग्रन्थों में पितृदोष और पितृ लोक का वर्णन है। स्वयं ब्रह्मा ने भी पितृ दोष की मुक्ति के महत्व के बारे में बताया है। ब्रहमा के कहने पर रूचि प्रजापति ने पितरौ की श्रद्धा पूर्वक स्तुति की थी जिसके फलस्वरूप उसे सुन्दर पत्नी और रौच्य मनु के रूप में पुत्र की प्राप्ति हई थी। उन्होंने बताया कि वास्तव में श्रीमदभागवत कथा का श्रवण विशेषकर पितृ पक्ष में श्रवण ही पितृ दोष से मुक्ति दिला सकता है इसलिए पितृ पक्ष में इसका श्रवण और पाठन पितरों को मोक्ष दिलाने का अटूट साधन है।
 
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