नई दिल्ली। ऐसा कहा जाता है कि नेपाल के मौजूदा प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' का झुकाव हमेशा से चीन की तरफ रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि दहल उसी माओवादी विचारधारा को मानते हैं जिसे चीन मानता है। अब वे खुलकर चीन को नेपाल में मनमानी करने की इजाजत दे रहे हैं। ईपरदाफास (EPardafas) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 26 दिसंबर, 2022 को नेपाल में माओवादी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के बाद से चीन की गतिविधियां अधिक मुखर हो गई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने अपने वैचारिक गुरू माओत्से तुंग की 130वीं जयंती पर नेपाल के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। गौरतलब है कि नेपाल में 20 नवंबर, 2022 को आम चुनाव हुआ था, जिसमें दहल की माओवादी पार्टी ने 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में से 32 सीटें जीतीं। यह फिलहाल नेपाली संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। रिपोर्ट के मुताबिक, 20 नवंबर को हुए चुनाव और दहल के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के बाद नेपाल में चीन का जुझारूपन और स्पष्ट हो गया है। इससे पता चलता है कि नेपाल चीन के हर कदम का समर्थन करने के लिए तैयार है। जब दहल ने नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली तो काठमांडू में चीनी दूतावास पहला विदेशी मिशन था जिसने उन्हें बधाई दी।
26 दिसंबर को, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, "नेपाल के पारंपरिक मित्र और पड़ोसी के रूप में, चीन नेपाल के साथ अपने संबंधों को गहराई से महत्व देता है। हम अपने मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ाने व इसे गहरा करने के लिए नई नेपाली सरकार के साथ काम करने को तैयार हैं। हम बेल्ट एंड रोड (BRI) सहयोग को आगे बढ़ाने, विकास और समृद्धि के लिए हमारी सामरिक सहकारी साझेदारी में नई गति प्रदान करने के लिए भी तैयार हैं जिससे हमारे दोनों लोगों को लाभ होगा।"
दहल सरकार के गठन के बाद नेपाल में चीन द्वारा विभिन्न गतिविधियां शुरू की गईं। 27 दिसंबर, 2022 को काठमांडू-केरुंग रेलवे का विस्तृत अध्ययन करने के लिए एक चीनी विशेषज्ञ टीम नेपाल पहुंची। केरुंग-काठमांडू रेलवे नेपाल में चीन की BRI योजना के तहत नौ विकास परियोजनाओं में से एक है। भले ही काठमांडू में दहल के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार आर्थिक समृद्धि के लिए बीजिंग के समर्थन को लेकर उत्साहित और आशावादी है, लेकिन काठमांडू के विशेषज्ञ और वरिष्ठ अर्थशास्त्री BRI के बारे में आशंका व्यक्त करते हैं। वे चिंतित हैं कि बड़े पैमाने पर परियोजनाओं के कार्यान्वयन से नेपाल श्रीलंका की तरह कर्ज के जाल में फंस सकता है, जिससे आने वाले दिनों में इसकी संप्रभुता कमजोर होगी।
हाल ही में, कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि नेपाल की उत्तरी सीमा पर चीन ने अपनी सलामी-स्लाइसिंग रणनीति के तहत उसकी काफी जमीन कब्जा ली। रिपोर्ट में कहा गया कि चीन ने नेपाल की उत्तरी सीमा पर 10 स्थानों पर 36 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा कर लिया है। नेपाली कृषि मंत्रालय द्वारा जारी सर्वे दस्तावेज में भी यही कहा गया है कि चीन ने उत्तरी सीमा पर 10 जगहों पर नेपाल की 36 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा कर लिया। इसी तरह, गृह मंत्रालय द्वारा किए गए अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला है कि नेपाल की "राज्य नीति" में सीमा के मुद्दों को शामिल करना आवश्यक है। हालांकि, विश्व समुदाय और स्वयं नेपाली शायद समस्या की भयावहता से अनजान हैं।
बता दें कि सलामी स्लाइसिंग का अर्थ उस रणनीति से है, जिसके जरिए कोई देश धमकी और समझौतों की प्रक्रिया में बांटो और जीतो का खेल खेलते हुए नए क्षेत्रों पर अपना कब्जा करता है। इस रणनीति में कई छोटे छोटे गुप्त एक्शन लिए जाते हैं। चीन ऐसा इसलिए करता है क्योंकि इन्हें एक साथ या खुले तौर पर जाहिर करना गैर कानूनी या मुश्किल होता है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने 2016 में नेपाल के एक जिले में स्थित पशुपालन के लिए एक पशु चिकित्सा केंद्र बनाया था, लेकिन नेपाल ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।